Saturday 7 January 2017

स्वर्ण मंदिर अमृतसर (चण्डीगढ़-वाघा-चण्डीगढ़ साइकिल यात्रा भाग-3)



नाम हरिमंदिर
नींव रखी जिसकी
संत मियां मीर ने
है सिखों का तीर्थ
मेरे लिए तो
एकता का प्रतीक
जितनी बार टुटा
उतनी बार बना
है ज्ञान से भरा
वो सरोवर भी खूब
काग होते जहाँ हँस डूब-डूब
धार्मिक एकता का प्रतीक
वो ग्रन्थ जो यहाँ
रखा गया
जिसमें सार
सब मार्गों का
लिखा गया


वो पीले वस्त्रों
वाले किसी
साधू सा
जो है पवित्र
वक़्त के आदि सा
वो दीप्त जैसे
ज्योती दिए की
जिसमें है
मिश्रित तेल
हर धर्म का
जो ग्रन्थ वहां
जो है विराजा
है उसमें हर रूहानी फनकार
श्रेष्ठ ज्ञान ही जिसका आधार
हर धर्म का सार
उसमें गुरुओं ने है सहेजा

जैसे साधू कोई
गंगा में स्नान करता
पीले वस्त्रों में लिपटा
उसी साधू सा
यह प्रतीत होता
और रखा
नाम सरोवर पर 
इस शहर का
की अमृतसर है यह
नाम गुरुओं के धाम का
अती मनमोहक है यह
की मन मोह लेता
स्थान है यह
की धर्म मिलाप का

दस्तक दर पर और
सीढ़ियां ये जो
नीचे ले जाने लगीं
मिट्टी की खुशबू
मुझे आने लगी

स्वर्ण रंग में
स्वर्ण कांती में
स्वर्ण वस्त्र में
ये स्वर्ण मंदिर
सुशोभित हुआ


उसी एकीश्वर के हम बच्चे
मन के सब सच्चे
बस अकल के कच्चे
आ जाते हैं हम
बातों में
धर्म के सौदागरों की
जिन्हें न राह पता है
न थांव पता है
इस पिंजरे से आज़ादगी की
जो बैठे हैं सांप बनके
उनको दूध रहे हम पिला
और जब डसते हैं यें
कई पीढ़ीयां करते तबाह

हे! परमेश्वर इस देश को

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