बुरी ओ कलजुगे दी रुत आयी
लोकां बेची अखीं दी शर्म पाई
सभ्यता, संस्कारां दा तां दाह-संस्कार होइ गया
कुड़िया-मुन्डुए की पुलिया पर सच्चा प्यार होइ गया
पेआ था जड़ा सियार हुण रंगोई के आया बहार पाई
बुरी ओ कलजुगे दी रुत आयी
बुरी ओ कलजुगे दी रुत आयी
आजकले दे प्यारे दा बी इतबार न कोई
जलिया था फुलमो दी लोथा कन्ने
से रांझू यार न कोई
यारी असां भी नी कचयां ने लायी
बुरी ओ कलजुगे दी रुत आयी
बुरी ओ कलजुगे दी रुत आयी
बुरा कलयुग का समय आया
लोगों की आँखों से शर्म चली गई
सभ्यता संस्कारों का समय गया
सड़क किनारे पुलिया पे सच्चे प्रेम की घटना घट गई
गिरा हुआ सियार अब रंगा हुआ बाहर है आया
(जो सियार पंचतंत्र में रंगरेज़ के रंग में गिर गया था वह अब बाहर आ गया है | ऐसा ही रंग चढ़ चुका है पश्चमी जगत का हमारे ऊपर)
बुरा कलयुग का समय आया
बुरा कलयुग का समय आया
आजकल के प्यार का इतबार न कोई
जो फुलमो की चिता के साथ जल गया था
वह रांझू यार न कोई
(फुलमो रांझू हिमाचल की प्रसिद्ध लोक कथा के पात्र हैं )
यारी तो वही सच्ची जिसने ख़ुदा को हो पाया
बुरा कलयुग का समय आया
बुरा कलयुग का समय आया
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17 सितम्बर को करीब 12 बजे मैं कसौली पहुँचा | कसौली से मनकी पॉइंट कि तरफ जाते हुए सड़क किनारे पहाड़ी पे उगे फूलों ने स्वतः ही मेरा ध्यान खींच लिया | साइकिल सड़क किनारे टिका, मैं फूलों की तसवीरें लेने पहाड़ी पे चढ़ गया |
तसवीरें खींचते हुए जलन का एहसास हुआ और मैं समझ गया कि
पहाड़ी पे केवल फूल ही नहीं बिच्छू बूटी भी है | खैर बिच्छू बूटी का ईलाज़ उसी के साथ उगे पालक
कि
तरह दिखने वाले पत्ते के रस से होता है, यह मैं जानता था | कुछ पत्ते पत्थर पे घिस के उनका रस निचोड़ के लगाते ही आराम मिल गया | बिच्छू बूटी हिमालय में सभी जगह पाई जाती है | आप अगर कसौली, शिमला घूमने निकलें तो हमेशा फुल पेंट पहने, मैं मूर्ख था जो निक्कर में ही चला आया था |
थोड़ी आगे जाने पे मनकी पॉइंट से लौटते हुए सैलानियों से बात हुई | जब मुझे पता चला कि मनकी पॉइंट पहुँचने के लिए 500 सीढ़ियां चढ़नी पड़ेंगी तो मैंने वहां जाने का विचार त्याग दिया | मन में ही बजरंग बली जी से क्षमा मांग मैं वापस जाने के बारे में सोचने लगा | कहते हैं कि मनकी पॉइंट शिमला से सिर्फ 3 फुट ऊँचा है और यहाँ से चंडीगढ़ साफ़ दिखता है | खैर मैं वहां नहीं गया तो तथ्य कि पुष्टि अगली बार जा के करूँगा |
वापसी का सफर लगभग 1:30 बजे शुरू किया | कसौली से गढ़खल और वहां से धर्मपुर वाले रास्ते पे हो लिया |
सुबह से बस सेब केले ही खाये थे और शरीर खाना माँग रहा था | कुछ दूर सड़क कि दूसरी तरफ मुझे भुट्टे बेचता हुआ आदमी दिखा | उसकी काम चलाऊ दूकान के सामने साइकिल लेटा दी और एक पत्थर पर बैठ गया | बातचीत करने पर पता चला कि वो नेपाल से आया हुआ प्रवासी मज़दूर है और वीकएण्ड पे भुट्टे बेचता है |
राजू भाई चंडीगढ़ चलोगे ?
ना भाईसाहब ना, वहां मेरे लायक कोई काम नहीं, मुझे तो बस खेती आती है |
उसके इस जवाब के आगे मैं बेबस था | वाकई किसानी में अब रखा ही क्या है ? ज़मीन बेच के विदेश जाओ, वहां टैक्सी चलाओ या अंग्रेजों के घरों में पोछा मारो | उसी में असली सकून है और पंजाब में तो यही लेटेस्ट फैशन है ! मुझे कुछ जवाब नहीं सुझा तो मैं चुप चाप भुट्टा खाने लगा |
राजू जी को अलविदा कह मैं सनावर होता हुआ धर्मपुर पहुँचा |
धर्मपुर से दायीं ओर शिमला-चंडीगढ़ हाईवे पे चलने लगा | कसौली से धर्मपुर तक उतराई का मज़ा लेते हुए, आराम से पहुँच गया |
धर्मपुर से ट्रैफिक बढ़ गयी और मैं बिलकुल बायीं ओर चलने लगा | उतराई अब भी थी लेकिन बीच-बीच में सड़क निर्माण कार्य चालू होने के कारण धूल बहुत थी |
आज तो कुछ और ही मंज़ूर था नियति को | मेरे आगे चल रहा ट्रक अचानक से अनियंत्रित होकर पलट गया और मेरे पीछे चल रहा ट्रक मेरे बिलकुल साथ से निकलता हुआ थोड़ी दूरी पे रुक गया | बौखलाहट में मैं भी गिर गया | होश सँभालने के बाद पता चला कि सामने से आ रही कार मोड़ पे गलत तरीके से ओवरटेक कर के निकल गई और उसे बचाने के चक्कर में ट्रक पलट गया और ट्रक में लदे सेब खाई में गिर गए | | खैर सब ठीक थे | भगवान् का शुक्रिया कर मैं भी चल पड़ा |
भरी पड़ी है सड़क मूर्खों से
जो पढ़े-लिखे हैं
और हैं बहुत जल्दी में
ऊँचे गाने लगा के चलते हैं
और डूबे रहते हैं नशे की मस्ती में
पकडे जाने पे वो अंग्रेज़ी बोलतें हैं
और काट देते हैं पुलिस का चालान
अपनी रसूख से
बच के चलियेगा बायीं ओर
इन रसूखदार धूर्तों से
भरी पड़ी है सड़क मूर्खों से
भरी पड़ी है सड़क मूर्खों से
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परवाणु से कालका और कालका से पिंजोर पहुँचा | पिंजोर से रेलवे ट्रैक के साथ चलते हुए लोहगढ़ पहुँचा |
कुछ और आगे एयरफोर्स रनवे के पास से नयागांव कि ओर (बायीं तरफ) मुड़ गया |
कुछ ही दूर चला था कि चढाई आ गयी | मैंने चढ़ने के लिए ज़ोर लगाया लेकिन साइकिल ने हार मान ली | ठक-ठक और कड़ाक की आवाज़ के साथ चैन उतर गयी | टायर एक दम जाम हो चुका था और यहाँ से मेरा हॉस्टल 15 km दूर था |
साइकिल की स्तिथि देख कर ही समझ गया था कि अब चंडीगढ़ तक साइकिल ऐसे ही घसीटनी पड़ेगी | 6 km घसीटने के बाद पक्की सड़क आयी ही थी कि बारिश शुरू हो गई | मोबाइल और कैमरे की बैटरी निकाल के साइकिल की सीट के नीचे छिपा दी | जब तक सिर छुपाने की जगह मिली तब तक तो मैं पूरी तरह से भीग चुका था | मैंने अपना सफर जारी रखा | नयागांव पहुँचने तक बारिश बंद हो चुकी थी लेकिन नयागांव की सड़कें, गलियां पानी से भरी हुई थीं | घुटने तक पानी में साइकिल घसीटते हुए मैं शाम 7 बजे हॉस्टल पहुँचा |
दिखी आया मैं पहाड़ कसौलिया दा
कोई खास फर्क नी साड़ी बोलिया दा
पहाड़ां दे माणु तां बच्चे शिवां दे
जिदी मर्जिया ने सोहणे फुल खिला दे
जिन्नि रचाया बिच्छूबूटिया दा जाल
ओही जाणदा है पहाड़ां दा हाल
देख आया मैं पहाड़ कसौली का
कोई खास फ़र्क नहीं है हमारी बोली का
हम सब तो एक ही भगवान के बच्चे हैं
जिसकी मर्ज़ी से फ़ूल खिलते हैं
जिसने रचाया है बिच्छू बूटी का जाल
वही जानता है पहाड़ों का हाल
वही जानता है पहाड़ों का हाल
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इस तरह सुबह 6 बजे शुरू हुई मेरी कसौली यात्रा शाम 7 बजे ख़त्म हुई |
यात्रा खर्च विवरण
नाश्ता - आधा किलो सेब तथा आधा दर्जन केले = 80 रुपए
लंच - 1 भुट्टा = 20 रुपए (15 रुपए का भुट्टा + 5 रुपए टिप)
कुल यात्रा खर्च = 100 रुपए
साइकिल ठीक करवाने का खर्च = 200 रुपए
तसवीरें खींचते हुए जलन का एहसास हुआ और मैं समझ गया कि
पहाड़ी पे केवल फूल ही नहीं बिच्छू बूटी भी है | खैर बिच्छू बूटी का ईलाज़ उसी के साथ उगे पालक
कि
तरह दिखने वाले पत्ते के रस से होता है, यह मैं जानता था | कुछ पत्ते पत्थर पे घिस के उनका रस निचोड़ के लगाते ही आराम मिल गया | बिच्छू बूटी हिमालय में सभी जगह पाई जाती है | आप अगर कसौली, शिमला घूमने निकलें तो हमेशा फुल पेंट पहने, मैं मूर्ख था जो निक्कर में ही चला आया था |