Tuesday 29 March 2016
Monday 28 March 2016
चंडीगढ़ से पटियाला यात्रा
मार्च माह के आखिरी हफ्ते में होली की छुट्टियां हुई | मैं घर नहीं गया और कॉलेज में ही धूमधाम से होली मनाने के बाद बाकि बची छुट्टिओं में बारी साइकिल की सवारी की थी | बाकि साथी घर गए थे तो किसी रिश्तेदार के यहाँ ही जाना ठीक समझा | सोच विचार कर लेने के बाद पटियाला का टारगेट फिक्स किया गया |
25 को सुबह लगभग 10 बजे चंडीगढ़ से पटियाला की ओर चल पडा | वैसे चंडीगढ़ से पटियाला जाने के लिए NH 1 ही सही रास्ता है लेकिन कंस्ट्रक्शन के चलते फोर की जगह टू लेन ही चालू है और उस पर हाईवे पर सम्पूर्ण ट्रैफिक को मद्देनज़र रखते हुए मैंने पामाल SH 12 A से जाना ही ठीक समझा | फतेहगढ़ साहिब की यात्रा भी इसी रस्ते से की थी तो कंडीशन्स का अंदाजा था | वैसे ट्रैफिक का हाल वही था जो पहले था |
चंडीगढ़ से लांडरां और वहां से चूनी कलां पहुंचा | निकले हुए एक घंटा ही हुआ था लेकिन धूप ने तो जैसे जला ही डाला था | सड़क पर मृग मरीचिका ( mirage) का नज़ारा कुछ ऐसा था की मानो थोड़ी दुरी पर समुन्दर है जो की थके तपते तन को शीतल करने को आतुर है लेकिन मैं उसके जितने पास जाता वो उतना ही और आगे खिसक जाता |
सांसे समेटता हुआ मैं फतेहगढ़ पहुंचा लेकिन वहां रुका नहीं सिरहिंद की ओर चल पडा | जानता था कि सिरहिंद ज़्यदा दूर नहीं है और वहां से पटियाला एक घंटे में पहुँच जाऊंगा | सिरहिंद पहुँच कर पानी पिया और थोड़ी देर रेस्ट की |
सिरहिंद से पटियाला की ओर चलना शुरू ही किया था की सेकेंड हैंड हीरो हॉक ने जवाब दे दिया | शायद एक्साइटमेंट में मैंने इतना जोर लगा दिया था की टायर एक ओर खिसक गया और जाम हो गया था | मैंने अपनी 4 साल की मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री को ताक पे रखते हुए रस्ते में पड़े हुए एक पत्थर को उठाया और रियर एक्सेल पे सही जगह दे मारा और सब सेट हो गया | वैसे हमेशा मैं 14 -15 का पाना लेके चलता हूँ लेकिन इस बार वजन कम रखने के चक्कर में छोड़ आया था | सबक मिल चुका था |
लगभग एक बज चुका था | सूर्य देवता एक दम प्रचण्ड रूप धारण किये हुए मुझे गन्ने की तरह निचोड़े जा रहे थे | पटियाला बस 15 km ही था लेकिन यह दूरी तय करना मुश्किल होता जा रहा था | जैसे तैसे करके मैं 1 :30 बजे के करीब मंज़िल पे पहुँच गया |
इस यात्रा का अगला भाग यहाँ पढ़ें
Wednesday 2 March 2016
चंडीगढ़ से फतेहगढ़ साहिब और संघोल यात्रा
फ़रबरी का महीना व्यस्तता में ही बीत जाने वाला था | आखिरी हफ्ते में गुरु जी के द्वारा फतेहगढ़ साहिब जाने की इच्छा जाहिर की गई | शुभम जी ने पहले थोड़ी टालमटोल की लेकिन बाद में वह भी रेडी हो गए | यात्रा के लिए शुक्रवार 26 फरबरी का दिन तय किया गया |
शुभम जी थोड़े ब्यूटी कॉन्शियस हैं | मौसम भी गर्म हो चूका था | धूप से बचने के लिए उन्होंने चेहरे पर मुल्तानी मिटी का लेप लगा लिया और मैंने और गुरु जी ने भी उनके इस स्टाइल को फॉलो कर लिया|
चंडीगढ़ से हम लगभग दोपहर के 2 बजे चले | चंडीगढ़ से ही ट्रैफिक ने परेशान करना शुरू कर दिया था | चंडीगढ़ से बाहर निकल कर सरहिंद रोड़ (SH 12A ) पकड़ ली | सरहिंद रोड़ तो गाड़ियों से ओवरलोडेड चल रहा था | लांड्रा से थोड़ा आगे जाने पे कम से कम सड़क पर पार्क की हुई गाड़ियों से तो पीछा छूटा लेकिन सामने से तेज रफ़्तार रोंग साइड पे ओवरटेक पे उतारू ट्रैफिक ने पूरे रास्ते खौफ फैलाये रखा | झंझेहड़ी से थोड़ा आगे जा के ब्रेक लिया गया | फोटो वगेरा खींचने के बाद फिर से चलने लगे और कुछ दूर जाने के बाद एहसास हुआ की मैं अपनी बोतल वहीँ भूल आया हूँ | वापिस जाने का मूड नहीं हुआ वैसे भी बोतल ख़ाली थी और उसमे रखा नीम्बुपानी हम पी चुके थे | मैंने थोड़ी स्पीड पकड़ ली और सबसे आगे चलने लगा | चुनी कलां के पास पंक्चर टायर को चेंज करने में लगी पंजाब पुलिस की तीन मुलाजिम दिखीं | सिचुएशन देख कर मैं भी रुक गया और टायर बदलने की पेशकश की और हेड कांस्टेबल साहिबा ने पाना मेरे हाथ में थमा दिया | थोड़ी ही देर में टायर चेंज कर दिया गया और तब तक शुभम जी भी मेरी मदद के लिए आ चुके थे | शायद साइकिल का यह फायदा भी है और नुकसान भी की आप अपने आस पास की दुनिया को इग्नोर किये बिना नहीं चल सकते जैसे की गाड़ी के विंडो क्लोज और म्यूजिक ओन करके किया जा सकता है |
भैरोपुर से हम फतेहगढ़ साहिब की और हो लिए और ट्रैफिक सरहिंद की तरफ | थोड़ी ही दुरी पे बाबा बंदा सिंह बहादुर की यादगार में बने गेट ने फतेहगढ़ साहिब की दुनिया की सबसे महंगी ज़मीन पर हमारा स्वागत किया |
गुरूद्वारे पहुँच कर सबसे पहले तो सरोवर में डुबकी लगाई जहाँ शुभम जी अपना चश्मा प्रवाहित कर आये | फिर सराय में कमरा लेने के बाद साइकिल पार्किंग में लगा दिए गए |गुरूद्वारे में माथा टेकने, गुरुद्वारों की हिस्ट्री सुनने और सरहिंद की वो दीवार देखने के बाद फतेहगढ़ साहिब के ऐतिहासिक महत्त्व का पता चला |
लंगर खाने के बाद हम करीब 8:30 बजे सो गए | करीब दस बजे आवाज हुई तो आँख खुल गई और पता चला की गुरु जी की तबीयत बिगड़ चुकी थी | सारी रात गुरु जी ने खांसते खांसते निकली |
सुबह करीब 9 बजे हम संघोल के लिए निकले | संघोल में पुरातन विभाग का म्यूज़ियम देखा तो पता चला कि संघोल में बुध स्तूप मिला है जो कि 2100 साल पुराना है | फिर स्तूप की साइट पर पहुंचे तो वहां तेजा सिंह जी से मुलाकात हुई | तेजा सिंह जी ने 1985 में वहां दबी एक सोने की माला ढूंढ निकली थी और इनाम स्वरूप उन्हें पंजाब सरकार से कम्बल भी मिला था | संघोल में ऐसी दो साइट हैं और अब दोनों भारतीय पुरातन विभाग के अधीन हैं |
एक ढाबे में परांठे खाने के बाद चंडीगढ़ जाने वाला रास्ता पकड़ लिया | नॉन स्टॉप चलते हुए लगभग 2 बजे चंडीगढ़ पहुँच गए |
CHANDIGARH TO FATEHGARH SAHIB
FATEHGARH SAHIB TO SANGHOL AND FROM SANGHOL TO CHANDIGARH
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