Friday 23 December 2016

गियर वाली साइकिल vs बिना गियर वाली (सिंगल स्पीड)



ये है मेहेंगे वाली
साइकिल ये
गियर वाली
तीखी चढ़ाई हो
या कीचड़, रेत, बजरी
ये सब जगह है चलती
इसको चलाना आसान है
यांत्रिक उन्नति का वरदान है
बस गियर बदलने की है मगज मारी
टना-टन है इस साइकिल की सवारी
इसमें जांघों का ज़ोर कम लगता है
नियंत्रण भी अच्छा बनता है
जहाँ कहीं भी जाओगे
वहां आपको कोई नहीं पूछेगा
आप तो बस
साइकिल का ब्यौरा बताओगे
इसका सवार अगर मुश्किल मंज़िल भी पायेगा
तो तारीफ तो साइकिल की होगी
हर कोई साइकिल के ही गुण गाएगा
भाई
3 आगे
8 पीछे
बहुत गियर हैं इसमें
तभी चढ़ गया तू पहाड़ पर
ऐसे कहाँ पहुँचता तू पहाड़ पर
खैर विज्ञान तो यह है कहता
एक ही कार्य के लिए
ऊर्जा का संरक्षण रहता
फिर गियर वाली हो या बिना गियर वाली
ऊर्जा व्यय तो एक ही रहता है
फर्क सिर्फ इतना है कि
गियर वाली में ऊर्जा धीरे-धीरे लगती है
और बिना गियर वाली में
हर बार पुरे दम से जान लगती है
पर आम आदमी को कौन समझाए
ये विज्ञान का भेद कौन बताए

और दूसरी है
सस्ते वाली
साइकिल ये
बिना गियर वाली
चढ़ाई चढ़ाने में
दम लगता है
रेत, बजरी से निकालने में
दिमाग लगता है
रास्ते के अनुसार
ढलना पड़ता है
चढ़ाई खड़ी हो तो
पैदल चलना पड़ता है
ये साइकिल तराश डालती है
जांघों को लोहा बना डालती है
दिमाग बना देती है महत्वाकांक्षी
निगाह को बना देती है दूरदर्शी
आपको रास्ते का हिसाब लगाना सिखाती है
ये दुनिया के रंग दिखती है
इसपे कहीं भी जाइये
और बेहतर हो कर आईये
लोग आपका हाल-चाल पूछेंगे
साइकिल का कोई जिक्र नहीं होगा
और किसी मुश्किल लक्ष्य की फतह का
सेहरा आपके सिर होगा

कौन सी साइकिल लूँ ?
गियर वाली या बिना गियर वाली ?

ये सवाल अक्सर साइकिल लेने वाले हर शख्स के दिमाग में आता है | चलिए आज इसी मुद्दे पर बात करते हैं कि गियर वाली या बिना गियर वाली दोनों में से बेहतर कौन सी है |

सबसे पहले तो यह जान लेते हैं कि गियर क्या होते हैं और इनसे होता क्या हैं ?

साधारण भाषा में बोलें तो गियर प्रणाली वह व्यवस्था है जिसके द्वारा हम अपने द्वारा लगाया जाने वाला बल कम या ज्यादा कर सकते हैं | ऐसा गियर के व्यास, गरारी के दांतों की संख्या को बदल कर किया जाता है | गियर वाली साइकिल में यह कार्य चैन को ऊपर-नीचे, अलग-अलग व्यास तथा भिन्न-भिन्न दांतों की संख्या वाली गरारियों पर सरका के किया जाता है | गियर वाली साइकिल में चैन को ऊपर नीचे करने (गियर बदलने कि प्रणाली) होने के कारण ज्यादा गतिमान कलपुर्ज़े होते हैं जो इसके खराब होने कि आशंका को बढ़ा देते हैं | वहीँ बिना गियर वाली साइकिल में ऐसी प्रणाली न होने के कारण, ज्यादा भरोसेमंद मानी जाती है और इससे साइकिल का वज़न भी कम रहता है | बिना गियर वाली साइकिल में एक ही गियर अनुपात होता है जिसे आप बदल नहीं सकते तभी इसे सिंगल स्पीड (single speed or ss) साइकिल भी कहते हैं | खैर साइकिल का यांत्रिक पक्ष अगली पोस्ट में रखूँगा अभी अपनी चर्चा साधारण मनुष्य की समझ तक सीमित रखते हुए इस प्रश्न का उत्तर ढूंढते हैं कि गियर वाली या बिना गियर वाली साइकिल में कौन सी बेहतर है |


गियर वाली साइकिल की बात करें तो ये आपको यह सहूलियत देती है कि आप रास्ते के हिसाब से साइकिल को व्यवस्थित कर सकते हैं | जैसे आप चढाई चढ़ रहे हों तो निचले गियर में आसानी से चढ़ सकतें हैं जबकि बिना गियर वाली साइकिल में आपको पेडल को धकेलने के लिए पूरा ज़ोर लगाना पड़ता है | अक्सर मैंने देखा है कि जब चढाई पर लोग थक जाते हैं तो गुस्सा फिर गियर शिफ्टर पर निकलता है | खचर-खचर कि आवाज़ के साथ 21000 कि साइकिल कि चैन उतर गई; हाँ भाई, सच में उतर गई थी दूसरी बार कसौली जाते समय मेरे साथ चलने वाले एक दोस्त की साइकिल कि ! उसके मुंह पर एक ही सवाल था, कि अगर 21000 खर्च करके भी चैन उतर रही है तो क्या फ़ायदा लेने का ? खैर मैं यही कहना चाहता हूँ कि साइकिल कोई भी हो अगर ये सोच कर चलाओगे कि महँगी है, इसको कुछ नहीं होगा तो आप गलत हो | साइकिल तो आपको सही तरीके से ही चलानी पड़ेगी | पर थका हुआ इंसान कहाँ इतना याद रखता है, उसके दिमाग में तो यही चलता है कि गियर बदल लूँ तो आसानी से चढ़ जाएगी और चढाई पर गियर बदलना, ये कला तो भाई साधनी पड़ती है | खैर बिना गियर वाली साइकिल में ऐसी कोई मगज मारी नहीं करनी पड़ती | आपका बस एक ही काम है ज़ोर लगाना, जहाँ तक चढ़ती है वहां तक चढ़ाओ फिर नीचे उतर जाओ और पैदल चलो, नज़ारे लेते हुए !


भारतीय परिवेश कि बात करें तो गियर वाली साइकिल को बिना गियर वाली साइकिल से उत्कृष्ट समझा जाता है | लोग सोचते हैं कि जितने ज्यादा गियर होंगे उतनी आसानी से साइकिल चलेगी | भाई गियर वाली साइकिल तो खड़ा पहाड़ चढ़ जाती है, ये 24 स्पीड है ! इसके आगे तेरी देसी साइकिल नहीं टिकेगी | खैर हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है | बहुत बार तो ऐसा हुआ है कि मेरे दोस्त अपनी गियर वाली साइकिल पर धीरे-धीरे चढाई चढ़ रहे थे और मैं पैदल ही इतना तेज़ चल रहा था कि उनसे आगे निकल आया !

चलिए अब बज़ट पर आते हैं | गियर वाली साइकिल बिना गियर वाली साइकिल से ठीक-ठाक महँगी होती है | अच्छी क्वालिटी कि गियर वाली साइकिल आपको कम से कम 15000 तक कि पड़ेगी वहीँ बिना गियर वाली 5000 कि मिल जाएगी | गियर वाली साइकिल के रख-रखाव का खास ध्यान रखना पड़ता है और एक बार कि सर्विस के 500 से 1000 रुपए तक लग जाते हैं वहीं बिना गियर वाली साइकिल का कोई खास झंझट नहीं है, महीने में एक बार तेल डाल दीजिये, बिंदास चलती रहेगी और खराब हो जाए तो शोरूम के चक्कर लगाने कि जरुरत नहीं है सड़क किनारे वाले भईया भी ठीक कर देंगे इसको |


अब सेहत कि बात करते हैं | अगर आप साइकिल चला कर वज़न कम करना चाहते हैं तो ये बात ध्यान से सुन लीजिये कि साइकिल आप जितनी मर्जी चलाईये जब तक खान-पान पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक वजन कम नहीं होगा फिर साइकिल चाहे गियर वाली चलाएं या बिना गियर वाली | आप बूढ़े नहीं हैं और फिटनेस चाहते हैं तो मेरी राय यही है कि बिना गियर वाली साइकिल ही चलाएं, ये आपकी टाँगे एक दम सॉलिड कर देगी | वैसे भी 1 घण्टा बिना गियर वाली साइकिल चलना गियर वाली साइकिल को 3 घण्टे चलाने के बराबर है |

अगर आप मैदानी इलाके में रहते हैं जहाँ चढाई-उतराई ज्यादा नहीं है तो बिना गियर वाली साइकिल एक बेहतर विकल्प है | हाँ अगर हिमालय में साइकिल चलाने का इरादा हो तो गियर वाली ही ले जाएं |

अच्छा, बच्चपन में हमने जो साइकिल चलायी थी उसमें गियर नहीं थे | मतलब हमारी ट्रेनिंग बिना गियर वाली साइकिल पर हुई है फिर भेड़-चाल में पड़ कर गियर वाली साइकिल ले ली अब गियर बदलने भी नहीं आ रहे, कुछ देर माथा मारने के बाद इंसान बोलता है जिस भी गियर में है : "अब चलण दे" | सर्विस के टाइम लंबा चौड़ा बिल हाथ में देख कर बन्दा सोचता है बेकार का सफेद हाथी पाल लिया ! तभी बोल रहा हूँ जब तक ख़ास ज़रूरत न हो तब तक देसी ही बने रहो इससे आपका पैसा, समय तो बचेगा ही बचेगा साथ में सेहत बनेगी सो अलग |


प्र० 1. भाई ज़बरदस्त साइकिल है, कितने की ली ?
प्र० 2. भाई बड़ा थका हुआ लग रहा है कहाँ से आ रहा है ?

पहला प्रश्न आपसे तब पूछा जाएगा जब आप गियर वाली साइकिल लेकर कहीं जा रहे हों और दूसरा तब जब आप कोई देसी साइकिल लेकर कहीं दूर निकल जाओ | मतलब साइकिल अगर गियर वाली है तो जीत साइकिल की और अगर देसी है तो जीत सवार की, जी हाँ यही मानसिकता है लोगों की | पता नहीं लोगों को क्यों लगता है कि गियर वाली साइकिल शायद अपने आप चलती है, इसमें तो ज़ोर ही नहीं लगता | खैर मेरी राय तो यह है कि दोनों स्तिथियों में सम्मान सवार का ही होना चाहिए क्योंकि चाहे गियर वाली हो या बिना गियर वाली ज़ोर तो शरीर का ही लगता है ! हाँ अगर तुलना कि जाए तो बिना गियर वाली साइकिल को चलना गियर वाली साइकिल चलाने के मुकाबले मुश्किल होता है अगर रास्ता ख़राब और चढ़ाई वाला हो, मैदानी इलाकों में तो सब बराबर है | |


बिना गियर वाली साइकिल कि सबसे अच्छी बात यह है कि यह साधारण है | चैन उतर जाए खुद चढ़ा सकते हैं | ख़राब रास्तों पर बिना आवाज़ किए चलती है, जिससे यह एहसास रहता है कि सब ठीक है | वहीँ दूसरी ओर गियर वाली साइकिल कितनी भी महँगी क्यों न हो खड्डों में चैन कि ऐसी आवाज़ आती है कि लगता है अब गई - अब गई | खैर एक बात यही भी है कि बिना गियर वाली साइकिल में आपकी सोच पहले से ही सेट होती है कि बस ज़ोर लगाना है उसके इलावा और कोई विकल्प नहीं है वहीँ गियर वाली में अक्सर लोग कन्फ्यूजिया जाते हैं कि क्या करें-क्या करें ?

बिना गियर वाली साइकिल के चोरी होने कि आशंका गियर वाली से तो बहुत कम है | आप निश्चिन्त होकर कहीं भी लगा कर घूम फिर सकते हैं | मैं कहना यह चाहता हूँ कि अगर आपके पास महँगी गियर वाली साइकिल है तो आपको अपने से ज्यादा साइकिल की फ़िक्र होगी और अगर बिना गियर वाली सस्ती साइकिल है तो आप यही कहोगे की साइकिल जाए भाड़ में अपना पहले देखो !


व्यक्तिगत राय मेरी यही है कि देखा-देखी छोड़ो, दिखावा छोड़ो और अच्छी सी देसी बिना गियर वाली साइकिल ले लो फायदे में रहोगे और अगर इन्टरनेट की खाक छानते रहे तो आपके हाथ में लंबे-चौड़े बिल ही आएंगे | एक दो बड़े टूर में सारा पैसा वसूल बशर्ते आप हिमालय कि ऊंचाइयां नापने का इरादा न रखते हों | बिना गियर वाली साइकिल से आपका अपने ऊपर विश्वास बनेगा न की साइकिल के ऊपर और टाँगे जो मज़बूत होंगी सो अलग, फिर चाहे ट्रैकिंग करो या दौड़ लगाओ स्टैमिना बढ़ा ही रहेगा |

साइकिल चलाओ 
स्वस्थ बनो 
स्वस्थ बनाओ 

Tuesday 20 December 2016

चण्डीगढ़ के आस-पास साइकिलिंग के लिए 5 बेहतरीन स्थान

आज़ादी मिली 
देश बंटा
लाहौर मिला पाकिस्तान को 
अब नयी राजधानी 
चाहिए थी पंजाब को 

चाचा नेहरू का सपना
आधुनिक नगर हो अपना 
जो तोड़ दे ग़ुलामी की ज़ंज़ीर 
लिखे नवभारत की उज्वल तकदीर 

ली कार्बूजियर की रूप-रेखा
वो खुले हाथ का चिन्ह देखा 
जो है देने को तत्पर 
कोई सामाजिक बुराई 
हावी न हो इस पर 
और ये तो चण्डी का गढ़ है 
हाँ भाई 
चण्डीगढ़ है

चण्डीगढ़ में रहते हैं और आपके पास साइकिल है तो इससे अधिक एक घुमंतू प्राणी को और क्या चाहिए ? चौड़ी सड़कें हैं, हरियाली है और है स्वतंत्र जिजीविषा ! चलिए फिर भी अगर आप चण्डीगढ़ में साइकिल ट्रैक पर साइकिल चला-चला के और पार्कों के चक्कर लगा-लगा के ऊब गए हों और आपको अपनी फिटनेस पर शक नहीं है तो ये स्थान आप ही के लिए हैं :

1. पड़छ डैम  

चण्डीगढ़ से 15 km दूर है और शहर की भागदौड़ से निकलने के लिए अच्छा शाँत स्थान है | चण्डीगढ़ से आधे घण्टे में यहाँ पहुंचा जा सकता है | अगर डैम में पानी कम हो तो थोड़ी ऑफरोडिंग करके दूसरी तरफ भी पहुँचा जा सकता है | 



2. जैंती डैम 

चण्डीगढ़ से 12 km दूर है | प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर शाँत एवं एकांत भरा स्थान है | यहाँ सूर्योदय का नज़ारा देखते ही बनता है | अगर आपकी किस्मत अच्छी हुई तो यहाँ नाचता हुआ मोर भी दिखाई दे सकता है | 



आप दोनों डैम एक साथ भी देख सकते हैं, पहले जैंती डैम जाईये फिर वहां से पड़छ डैम और फिर नयागांव होते हुए वापिस चण्डीगढ़ आ सकते हैं |

3. सिसवां डैम 

चण्डीगढ़ से 20 km दूर है | आखिर में थोड़ी चढ़ाई है जो सफ़र का अंत अच्छे अंदाज़ में करेगी | लंबी यात्रा की ट्रेनिंग शुरू करने के लिए एक अच्छी जगह है | 



4. सुखना परिक्रमा

चण्डीगढ़ गोल्फ कोर्स से शुरू कीजिए फिर सुखना झील की पिछली तरफ (किशनगढ़) वाले रास्ते से सुकेतडी होते हुए ख़ुडा अलीशेर से नयागांव (मैप देखें) और फिर वापिस चण्डीगढ़; ये परिक्रमा पथ कुल 17 km लंबा है | ये रास्ता आपको शहर से गांव में, फिर पहाड़ों में और आखिर में वापिस शहर में ले आयेगा | 






5. चण्डीगढ़-नयागांव-पिंजोर-पंचकुला-चण्डीगढ़ परिक्रमा 

कृप्या रोज़ साइकिल चलाने वाले या फिट लोग ही इस रास्ते पे जाएं | चण्डीगढ़ से नयागांव आप शहर में साइकिल चलाएंगे | नयागांव से करोरां रोड़ शुरुआत में आपको गांव का एहसास दिलाएगा उसके आगे पटियाला की राव (नदी) के रेत पर आप ऑफरोडिंग करेंगे | करोरां रोड़ के आखिर में आपको तीखी चढ़ाई मिलेगी फिर ये रास्ता नालागढ़-बद्दी हाईवे से मिल जाएगा | वहां से दाहिने हाथ पिंजोर की तरफ हो जाईये | पिंजोर पहुँच कर सड़क किनारे गन्ने का जूस पीजिये थकान मिटाइये और फिर हिमालयन एक्सप्रेसवे से चण्डीगढ़ की तरफ हो जाएं | यादवेंद्रा गार्डन से थोड़ा आगे कौशल्या डैम आएगा वहां आराम करिये और फिर वापिस चण्डीगढ़ आ जाईये | ये रास्ता कुल 50 km लंबा है, आपकी साइकिलिंग की उस्तादी का हर दांव पूरी तरह परखेगा |






ये सभी रास्ते आपका अच्छा इम्तिहान लेंगे इसलिए अपने साथ पर्याप्त पानी ले जाना न भूलें | सभी स्थान फोटोग्राफी के लिए शानदार हैं, कैमरा जरूर ले जाएं | 

मंज़िल क्या है ? 
चंद लम्हों का ठहराव 
मेहनत का फल
या कोई अदभुत नज़ारा 
देखो, समझो और जानो 
आखिर है क्या ये खेल सारा ?

मंज़िल क्या है ?
पथिक कि थकान
सम्मान का गुमान
झूठा अभिमान
या जोश की उड़ान
नाकामयाबी का कथन 
कि लौट के आऊंगा मैं दोबारा 
आखिर है क्या ये खेल सारा ? 

मंज़िल क्या है ?
एक अनुभूती ख़ुशी की
शुरुआत वापसी की
चलो चलें अब अपने घर यारा 
आखिर है क्या ये खेल सारा ?


Tuesday 29 November 2016

गंगा जी की ओर चण्डीगढ़ से हरिद्वार

जो है स्वर्ग में मन्दाकिनी 
भागीरथी भू लोक पर 
जो है ब्रह्मचारिणी 
है माँ मृत्यु लोक पर 
जो है जाह्नवी  
नारी शक्ति स्वरूप पृथ्वी लोक पर 

जो है पाप नाशिनी
मुक्ति दायिनी
तृष्णा ध्वंसकारी 
ज्ञान प्रददाति संस्कारी 
जिसमें डुबकी लगा 
मनुष्य धर्म रंग में रंगे
हर हर गंगे 
हर हर गंगे 
हर हर गंगे 


चल सुन तू भी गंगा जी कि पुकार
जो है ज्ञान का अक्षय धनागार 
जो है आलौकिकता का रूप साकार 
धोकर हमारे पापों का भार
करती मानवता को निर्विकार 
चल-चल अब बाकि सब विचार त्याग 
चल-चल करती गंगा का मधुर राग 
सुन त्रिलोक कि सुरधनी का आलाप   
अब चल छोड़ सब क्रियाकलाप 

सांसारिक आडम्बर छोड़ चलें 
चल अब गंगा जी कि ओर चलें 
चल चलें चंडीगढ़ से हरिद्वार
होके साइकिल पे सवार
लगाएं गंगाजी में डुबकी   
और गंगा तो मैया है हम सबकी 

शागिर्द :

जी चण्डीगढ़ से हरिद्वार 200 km दूर है 
और 200 तो एक तरफ का कुल 400 का टूर है
खैर ये तो सब मीलपत्थरों की माया है 
और हमसफ़र गुरु है तो रहनुमा हमसाया है   
मनुष्य तो वही है जो विपत्तियों से न डरे
जो आँधियों के बीच सीना तान चला चले
चलो आज उसी धर्म की राह चले चलें  
सब काम दरकिनार कर चलें  
चलो गंगा स्नान को चलें 

निकले चण्डीगढ़ से 24 नवम्बर, सुबह 3 बजे


अभी भोर को समय है 
संसार अभी सोया है 
और जो सोया है 
उसने तो खोया है
सामान दोनों का जो एक झोले में डाल दिया गया 
फिर उस झोले को साइकिल के पीछे बांध दिया गया
ब्रह्मवेला में चण्डीगढ़ से प्रस्थान जो किया 
और अँधेरे पथ को टोर्च से प्रकाशवान जो किया
ढ़लती निशा में अभी ठण्डक है थोड़ी  
हरिद्वार की ओर चली गुरु-चेले की है जोड़ी



चण्डीगढ़ से ज़िरकपुर और ज़िरकपुर से पहुंचे अम्बाला 
दो घण्टे के सफ़र ने पूरा शरीर गरमा डाला
साइकिल की सवारी 
अम्बाला से सहारनपुर की ओर हो गई 
और मुल्लाना में भोर हो गई 





एक चाय की दुकान पे हम जो रुके
अभी तलक तो थे हम भी कुछ थके
एक बुजुर्ग ने हमारा पूरा मनोरंजन कर डाला 
अपनी कटु अभिव्यक्ति से 
राजनीती का चीरहरण कर डाला 
73 की उम्र में भी वो चेहरा कैसा खिले 
अब ऐसे लोग विरले ही मिलें
चाय पी और कहा अलविदा 
हम तो अब अपनी राह चले
चण्डीगढ़ से हरिद्वार 
हम गंगा जी कि ओर चले चलें 



खैर बात गंगा जी कि हुई है 
तो थोड़ा विस्तार में बताता हूँ 
स्वर्ग से भू तक कि सुनाता हूँ 
बड़ी अनूठी है मेरे रहनुमा कि यह माया 
जिसने ऐसा खेल रचाया
तपस्वी ब्रह्मचारिणी गंगा जी का 
अहंकार देखो कैसे भगाया 

हिमालय पुत्री उमा का जब शिव से विवाह हुआ  
विदाई के समय तब शिव-गंगा का टकराव हुआ 
शक्तिशाली कौन दोनों में इस बात पे वाद-विवाद हुआ 
ब्रह्मचारिणी रहूंगी जीवन भर 
बैठूंगी तुम्हारे ही मस्तक पर  
गुस्से में आकर तब गंगा ने तब यह प्रण धार लिया 
और समय आने पर अपना वचन निर्वाह किया 

इक्ष्वाकु कुल राजन सगर ने अश्वमेघ यज्ञ प्रदीप्त किया 
अपने साठ हज़ार पुत्रों को घोड़े का दायित्व दिया
फिर देवराज इन्द्र ने सिंहासन भय में छलकपट किया 
घोड़ा माया से मुनि कपिल के आश्रम में बाँध दिया
सगर पुत्रों ने मुनि को खरीखोटी जो सुनाई 
तपस्या भंग हुई मुनि कि 
अब उनकी शामत आयी
मुनिवर हुए क्रोधित जब कभी  
शाप से भस्म कर दिए पुत्र सभी 
जब राजा सगर मुनि से क्षमा मांगने आया 
तब मुनि ने पुत्र मुक्ति के लिए 
गंगाजल का मार्ग सुझाया 
गंगा के स्पर्श से मिलेगा तुम्हारे पुत्रों को मोक्ष 
पर गंगा बसे त्रिलोक में भू पर लाये कौन ?
फिर मुनि ने राजन को कठोर तपस्या का मार्ग दिखलाया 
कहा परिश्रम ही वो मार्ग जो सदा ले स्वर्ग भू पर आया 
राजा सगर पहुँचा हिमालय 
घोर तपस्या को आया 
तप करते-करते प्राण छूट गए 
फिर पौत्र अंशुमान ने तप का बेड़ा उठाया 
अंशुमान पुत्र दिलीप भी इसी मार्ग पर आया 
पर जब सुना भागीरथ ने पिता दिलीप भी तप में गया समाया
विवाह बेदी छोड़ भागीरथ वंश तारने आया 
तप में लीन भागीरथ को गंगा ने जो डराया
कि तू संतानहीन है, यहाँ अपना वंश मिटाने आया 
इधर भागीरथ का तप 
उधर गंगा जी का तप 
तप का तप से टकराव हुआ 
गंगा का अहं विकराल हुआ 
गंगा भू पर लाने आये भागीरथ को
गंगा ने ही शाप दिया

राख कर दे तेरे तपोबल को मेरी समस्त तपसिद्धि
और तू सोचता है तू मुझसे बड़ा है  
गिर जा तू वहां से जहाँ भी तू खड़ा है 
मारी जो गयी थी अहं में बुद्धि 
शाप से दोनों कि ही नष्ट हुई सिद्धि
भागीरथ हंसा और फिर से तप में लग गया 
प्रसन्न हुए भगवान और वर मांगने को कहा 
भागीरथ ने मांगी गंगा और पुत्र प्रदान करने को कहा 
भगवान ने एक शंका जताई 
अगर इस क्रोध से गंगा भू पर आयी 
तो पृथ्वी का नाश पक्का है
भोलेनाथ ही इस समस्या का समाधान सच्चा है 
फिर भगवान ने शिव के जटाजूट की युक्ति सुझाई
भागीरथ फिर लीन हुआ तप में 
उद्यमी एक बार फिर लगा उद्यम में    
स्थान गौकर्ण में एक साल तक एक पैर के एक अँगूठे पर खड़ा रहा 
भोलेनाथ को प्रसन्न करने में लगा रहा 
केवल वायु का सेवन किया 
कठोर तप से भोले को प्रसन्न किया 

आखिर वह शुभ घड़ी आयी 
भागीरथ की तपस्या 
ले गंगा को स्वर्ग से भू पर आयी 
शिव ने फिर गंगा को जटाओं में जकड़ लिया
सारा अहं पानी में बदल दिया 
फिर एक लट अपनी खोल दी 
बिन्दुसर में गंगा छोड़ दी 
छूटते ही गंगा सात धाराओं में बँट गई
तीन गयीं पूर्व तीन पश्चिम 
और सातवीं भागीरथ के पीछे चल पड़ी 
गंगा त्रिपथा और भागीरथी बन गई 

भागीरथ ने फिर गंगा मैया को रास्ता दिखाया 
लेकिन एक आश्रम जो राह में आया 
गंगा के जल ने जब आश्रम में उत्पात मचाया 
ऋषि जहुन को क्रोध आया
और वो गंगा का सारा पानी पी गए 

फिर आग्रह करने पर ऋषि ने गंगा को कानों से निकाला
गंगा अब जाह्नवी बनी
ऋषि जहुन ने है उसे अपनी पुत्री माना
  
गंगा भागीरथ के पीछे-पीछे चलती हुई सागर में मिली 
भागीरथ के पूर्वजों को मुक्ति जो मिली 
मुक्त हुआ वह भी पितृ ऋण से
और इस धरती को माँ स्वरूप गंगा मिली

चलिए यात्रा पे आता हूँ 
यात्रा की सुनाता हूँ 
मुल्लाना से पहुंचे जगाधरी 
धूप भी थी अब कुछ चढ़ी
जगाधरी से चले हम सहारनपुर की ओर
अरे भाईसाहब यह रास्ता है कमरतोड़ 
सड़क तो दो लेन की है
ओर ट्रैफिक है घनघोर



सरसावा से थोड़ा पीछे 
पुल के नीचे 
गंगा की बहन यमुना मिली 
गुमशुदा नकारी सी लगी 
गाड़ी वाले रुकते हैं 
कूड़ा गिरते हैं 
और प्रणाम कर चले जाते हैं 
वाह रे भाई तुम्हारी भक्ति 
यमुना किस्मत पर तरसी 
कूड़ा कर्कट डाल चले
बड़ा करके तुम सम्मान चले 
अब किस मुँह से 
नदियों को माता कह के बुलाते हो
अपने किये पर भी कभी पछताते हो 
कैसी बेशर्मो की है कौम चली 
सब जानते हुए भी मौन चली
कुदरत के नियम 
ये सारे तोड़ चली  
बर्बादी की ओर चली
  
सरसावा से सहारनपुर तक तो और बुरा हाल है 
सड़क बन रही है और चलना दुशवार है 
रास्ता संकरा है 
सड़क किनारे मलवा पड़ा है 
चलें किस ओर 
सामने से बस वाला डिप्पर मारता है
कहता है मैं तो आ रहा हूँ 
तुम नापो अपनी ठौर 



यहाँ ड्राइवर नहीं यमराज गाड़ी चलाते हैं
साइकिल वाले जिनको नज़र ही नहीं आते हैं 
तेज़ हॉर्न बजाता हुआ जब ट्रक सरसराता गुज़रता है
उस समय यम साक्षात् दिखाई पड़ता है


बचते बचाते हम सहारनपुर पहुंचे 
यहाँ भी ट्रैफिक ने भीतर दबोचे
कोई भी कहीं से आ जा सकता है 
ये U.P है दोस्त, यहाँ सबका राज चलता है 
अरे ये टेम्पो वाले भी बड़े हैं निराले 
साथ सटा के चलाएंगे
ब्रेक आपकी लगेगी 
ये तो भईया निकल जावेंगे

खैर निकले सहारनपुर से 
एक ढ़ाबे पे रुके
खाना लगाने को बोला 
और चारपाई पे ढह गए


आधा घण्टा हो गया 
खाना न आया 
पता चला की अभी बनाने वाला नहीं आया 
जब नहीं आया तो हमें बैठा क्यों लिया 
बेकार में हमारा टेम खोटी किया 
फिर बोला की अभी 35 मिनट लगेंगे
यह 35 का कैसा हिसाब हुआ
बेकार में हमारा समय बर्बाद हुआ  

भूखे ही हम आगे बढ़े 
दिखे जो केले तो गगलहेड़ी में रुके 
भर पेट फिर केले जो खाये 
निढ़ाल शरीर में जैसे प्राण लौट आये 
अब तो ऊर्जा की कोई कमी नहीं 
ये केले भी किसी अमृत से कम नहीं



चलते-चलते अब हम भगवानपुर पहुंचे 
यहाँ से हरिद्वार के दो रास्ते होते
सीधा जो जाए रुड़की वाला 
वो रास्ता है लंबा वाला 
बहिने हाथ मुड़ के इक छोटा रस्ता है कटता 
हरिद्वार है जहाँ से पास पड़ता
चले इसी रस्ते पे दोनों हम दीवाने 
अपनी ही मस्ती में हैं चलने वाले 
वो जो सभी को रास्ता दिखता 
भटके हुए को सही राह लाता
बन्दा तो बस उसी का हुक्म बजाता
रहनुमा भी मेरा परीक्षा लेता है 
चलते हुए का होंसला परख़ लेता है 
टायर अगला जो मेरा पंचर हुआ 
कुछ देर बाद मुझे एहसास हुआ 
अभी राह सुनसान थी
सन्नाटा था छाया
मैंने भी फिर मन बनाया 
मिली जो दुकान तो लगवा लूँगा
नहीं तो ऐसे ही हरिद्वार पहुँचा दूँगा 
इसी सोच से मैं गुरूजी के पीछे चलता आया 
खैर रहनुमा जो था मेरा हमसाया
सब कुछ तो है उसी की माया   
रास्ते में गांव इमलीखेड़ा आया 
दुकान मिली तो गुरूजी को बताया  
परीक्षा लेने पंचर था आया  
टायर में हवा अभी भी बाकी है 
साइकिल ये मेरी सुख-दुःख की साथी है 
खैर ढीले इसके कुछ अंजर-पंजर हैं 
अब अगले टायर में कुल 11 पंचर हैं

सही हुई साइकिल तो फिर से चल दिए 
हरिद्वार की ओर जोश नया लिए
जब यात्रा का अंतिम पड़ाव आता है 
नया जोश भर जाता है 
थके हुए अंगों में फिर नयी स्फूर्ती आती है
ये आखिरी मोड़ है कहते-कहते
बची हुई राह भी कट जाती है 

आखिर हम हरिद्वार पहुंचे 
हर हर गंगे 
हर हर गंगे 
के जयकारे गूँजे
उतर गए सीधे घाट पर साइकिल सहित
किया वो कर्म आज जो था पहले से निहित
गंगा को देख कर मैं बस देखता रहा 
भीड़ तो थी बहुत मगर मुझे घाट निर्जन ही लगा 
ये आडम्बरों से घिरे लोग कब आँख खोलेंगे
कब चश्मे पर जमी धूल पोछेंगे 
जब परिश्रम ही नहीं करोगे 
तो पूजा पाठ से क्या होगा
दिल में है चोर 
तो दान से क्या होगा 


गंगा की रीत निभाने आये हैं 
बहुत सारे यहाँ अपने बजुर्गों को घड़े में भर लाये हैं
अस्थियां गंगा में बहती हैं 
लुगाई ख़सम से कहती है 
आज से बाबूजी का कमरा मेरे भाई का होगा
और घर जयदात सब मेरे नाम होगा 
आज से घर परिवार के सब नाते निभाएंगे 
अगली बार मम्मी जी के टाईम ऋषिकेश भी घूमने जायेंगे


अगली सुबह हर की पौड़ी पर गंगा स्नान किया
कुछ चिंतन मनन विचार किया 
शांत हुआ जब मन का भंवर 
फिर गूँजे ये गीत स्वर:  

नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को
सबल-संग्रामी, समग्रोगामी
बनाती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा 
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यूँ ?
(-डॉ भूपेन हज़ारिका)
  

Sunday 13 November 2016

चूड़धार यात्रा भाग-2

ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ 
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते 
(- निदा फ़ाज़ली ) 

चूड़धार की सर्द रात है 
और तम्बू में दुबका पड़ा हूँ मैं
भेड़ की ऊन के दो कम्बल हैं मेरे पास 
उन्हीं में सिमटा पड़ा हूँ मैं
घुटने छाती से लगाए
हाथों से पैरों को सेंकता हूँ मैं
सर-सर करता तम्बू का कपड़ा 
सर्द हवा के थपेड़ों से है अकड़ा 
माँ की पुरानी चुनरी सर पे लपेटे 
पड़ा हुआ हूँ मैं

सोचता हूँ आज मैंने क्या पाया? क्या देखा?
क्या खोया ? क्या सीखा ?   
मैंने पाया खुद को खुद के और करीब  
देखा तो उसी को हर जगह 
जो मैंने खोया तो अपना झूठा ज्ञान
और सीखा की वही है हर वजह की वजह  

खैर भली है मेरे रहनुमा की रहनुमाई 
दूसरे पहर में मुझे नींद आई
नींद भी है ये कैसा वरदान 
वक़्त से इंसान हो जाता है अनजान

टन-टन की आवाज़ जो आई कहीं से 
शायद वो घण्टी बंधी जो गधे के गले से
नींद जो मेरी इसने उड़ाई 
जो गधे ने तम्बू से अपनी पीठ सर-सराई
तीसरे पहर के मध्य में
तम्बू से फिर जो मैंने सिर निकाला 
गधों ने मैदान में डेरा है डाला 
अब तो बस यही दुआ करो भाई 
कोई गधा तम्बू न उखाड़ दे भाई 
गधे जब तम्बू के चक्कर लगाते
घण्टी की टन-टन से जो डराते
अब तो उठ के बैठ गया 
अब नींद कहाँ आये 
ऊपर से सर्द रात जुल्म ढाए
ना ज़ाने कहाँ से रिस कर सर्द हवा आए

चित्र सुबह लिया गया है |

अब तो बैठ गया हूँ मैं चौंकड़ी मार के 
दोनों कम्बल भी ओढ़ लिए हैं लपेटा मार के
आखिरी पहर ये किसी तरह निकल जाए 
सर्द रात के बाद जो खिली धूप आए
उसका स्वाद ही निराला होगा 
अँधेरे के बाद जब उजाला होगा 

मेरे रहनुमा तूने कैसी ये कायनात बनाई 
ये सूरज ये चाँद ये दिन ये रात 
ये सर्दी ये गर्मी 
ये बसंत ये बरसात 
क्या रंग-ए-कुदरत में तूने भरे 
फिर भी इंसान क्यों तुझसे ना डरे  
तेरी ही ताक़त जो सबसे बड़ी है 
इंसान की मत तो मरी पड़ी है 
काटे हैं जंगल कारखाना लगाया 
प्रदूषण ही प्रदूषण है सब जगह फैलाया 
कहते हैं फिर की बर्फ़ कम गिरी है 
हमारी ही हरकतों के कारण गिरी है
ग्लेशियर ने भी हैं पाओं पीछे खींचे
सूखे हैं झरने अब खेत कहाँ से सींचें  
जो कहता है कि वो सबसे बड़ा है 
अपनी ही कब्र खोदे खड़ा है 

खैर मैं कम्बल लपेटे हुए तम्बू से बहार आया
अंतिम पहर के अँधेरे का साया 
रुख़सत हो रहा था 
वो दूर कहीं संतरी आसमान अलसाया
अंगड़ाई ले रहा था  
वाह ये नज़ारा नशीला 
पहले बादल की चादर फिर संतरी फिर नीला


क्षितिज़ की और आँखें लगाए 
ऊष्मा के इंतज़ार में
उत्सुकता से भरे हुए नयन अलसाए
करता हूँ भगवान से  प्रार्थना 
ध्यान क्षितिज़ पे लगाए 
सर्द रात में मुझे भेड़ की ऊन का कम्बल बन लपेट लेना 
और सुबह मुझे मेरे हिस्से की धूप देना
मेरे रास्ते के पत्थर चाहे बड़े कर देना 
पर जब थक जाऊँ तो दिल में जोश जगा देना 
और अगर मुनासिब हो तो थोड़ा ज्ञान भी देना
मुझे तुम मेहनत का दान देना

    

खैर निशा ख़त्म हुई आदित्य उदय हुआ 
ठण्डा पड़ा शोणित अब कुछ गर्म हुआ 
मानो कोई होली खेल रहा हो 
संतरी रंग की पिचकारी सब पर ठेल रहा हो 
सब कुछ प्रकाशवान है 
पहाड़ पत्थर बादल सब दीप्तमान हैं 
शिथिल परिवेश में ऊर्जा का संचार है
हे सूर्यदेव चारों दिशाओं में तेरी जय-जयकार है 



चढ़ता हुआ भानु मनोबल चढ़ा देता है 
प्राकृति के प्रति सम्मान बढ़ा देता है 
अन्धकार मिटा देता है 



खैर हमने तम्बू उखाड़ा और सामान समेटा
शिरगुल महाराज के दरबार में हाज़री लगाई 
फिर जिस राह आए थे उसी राह कारवां लौटा
फिर पहाड़ी पे चढ़ के भोलेनाथ के किए दर्शन
कैसा मनोरम ये चूड़धार दर्शन 



बात है इसकी एक बड़ी ही निराली 
यही सबसे ऊँचा पर्वत है 
जहाँ तक निगाह डाली 
खड़े होके इस पर सुदूर पहाड़ दीखे 
कुछ जाने पहचाने 
कुछ नए नाम सीखे 
चलो भाईयो अब लौट चलें 
जिस राह आए थे उसी राह चलें 


नीचे जो हम चश्मे तक उतर आए
थे हम सभी भूख के सताए 
फिर किन्नौरी ने अपने झोले से पतीला निकाला 
मैंने भी कामचलाऊ चूल्हा बना डाला 
लकड़ी इकठ्ठी कर फिर आग जलाई
फिर पतीला भर मैग्गी बनाई 
जो बचे अंगारे तो उसमें आलू दबा दिए 
मैगी खा के शांत हुए 
तब तक आलू भुना गए   
खैर आलू रख लिए राह के लिए 
पानी भर चल दिए हम नौहरा के लिए




पेट जो भरे तो नयी ऊर्जा आई 
तीनो हम अब तो दौड़े चले भाई 
अब रुकते नहीं हैं बस चलते जाते 
थके हुए हैं पर 
गीत ख़ुशी के गाते


जंगल के भीतर जब फिर वो घास का मैदान आया 
कुछ देर के लिए वहां डेरा जमाया 
पानी पिया और आलू भी खाये 
फिर से जो सफ़र शुरू किया 
सीधा जा के नौहरा में ख़त्म किया 
नौहरा से फिर चण्डीगढ़ पहुंचे 
यात्रा समाप्त झुई 
सब सकुशल लौटे
देखा चूड़धार, सब भोले की माया 
रहनुमा वो मेरा, मेरा हमसाया 
पर उसी को खोजता था मैं आया 
और जो देखा जो अंदर तो उसी को पाया 
रहनुमा वो मेरा, मेरा हमसाया

जानकारी 

1. अगर तम्बू में रात बिता रहे हों तो अपना सारा सामान समेट कर बैग में भर कर ही सोएं | बिखरा हुआ सामान सुबह तक सीलन  से भीग चुका होगा |

2. आपने साथ लेकर गए तमाम प्लास्टिक, मैगी, चिप्स, बीसकिट  के खाली पैकेट वापिस ले आएं; यहाँ-वहां गन्दगी न फैलाएं |

इस यात्रा का सबसे सुन्दर चित्र गुरूजी को समर्पित है, जिनके साथ पिछले साल मैं यहाँ आया था और यहीं से मेरी ट्रैकिंग की शुरुआत हुई थी :