चंडीगढ़ से पटियाला यात्रा
मार्च माह के आखिरी हफ्ते में होली की छुट्टियां हुई | मैं घर नहीं गया और कॉलेज में ही धूमधाम से होली मनाने के बाद बाकि बची छुट्टिओं में बारी साइकिल की सवारी की थी | बाकि साथी घर गए थे तो किसी रिश्तेदार के यहाँ ही जाना ठीक समझा | सोच विचार कर लेने के बाद पटियाला का टारगेट फिक्स किया गया |
25 को सुबह लगभग 10 बजे चंडीगढ़ से पटियाला की ओर चल पडा | वैसे चंडीगढ़ से पटियाला जाने के लिए NH 1 ही सही रास्ता है लेकिन कंस्ट्रक्शन के चलते फोर की जगह टू लेन ही चालू है और उस पर हाईवे पर सम्पूर्ण ट्रैफिक को मद्देनज़र रखते हुए मैंने पामाल SH 12 A से जाना ही ठीक समझा | फतेहगढ़ साहिब की यात्रा भी इसी रस्ते से की थी तो कंडीशन्स का अंदाजा था | वैसे ट्रैफिक का हाल वही था जो पहले था |
चंडीगढ़ से लांडरां और वहां से चूनी कलां पहुंचा | निकले हुए एक घंटा ही हुआ था लेकिन धूप ने तो जैसे जला ही डाला था | सड़क पर मृग मरीचिका ( mirage) का नज़ारा कुछ ऐसा था की मानो थोड़ी दुरी पर समुन्दर है जो की थके तपते तन को शीतल करने को आतुर है लेकिन मैं उसके जितने पास जाता वो उतना ही और आगे खिसक जाता |
सांसे समेटता हुआ मैं फतेहगढ़ पहुंचा लेकिन वहां रुका नहीं सिरहिंद की ओर चल पडा | जानता था कि सिरहिंद ज़्यदा दूर नहीं है और वहां से पटियाला एक घंटे में पहुँच जाऊंगा | सिरहिंद पहुँच कर पानी पिया और थोड़ी देर रेस्ट की |
सिरहिंद से पटियाला की ओर चलना शुरू ही किया था की सेकेंड हैंड हीरो हॉक ने जवाब दे दिया | शायद एक्साइटमेंट में मैंने इतना जोर लगा दिया था की टायर एक ओर खिसक गया और जाम हो गया था | मैंने अपनी 4 साल की मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री को ताक पे रखते हुए रस्ते में पड़े हुए एक पत्थर को उठाया और रियर एक्सेल पे सही जगह दे मारा और सब सेट हो गया | वैसे हमेशा मैं 14 -15 का पाना लेके चलता हूँ लेकिन इस बार वजन कम रखने के चक्कर में छोड़ आया था | सबक मिल चुका था |
लगभग एक बज चुका था | सूर्य देवता एक दम प्रचण्ड रूप धारण किये हुए मुझे गन्ने की तरह निचोड़े जा रहे थे | पटियाला बस 15 km ही था लेकिन यह दूरी तय करना मुश्किल होता जा रहा था | जैसे तैसे करके मैं 1 :30 बजे के करीब मंज़िल पे पहुँच गया |
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