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Saturday, 2 September 2017

किन्नर कैलाश यात्रा

मानसरोवर से चली वो
छिपकिला से भारत आयी
खाब में मिली स्पीति जिससे
बसपा कड़छम में मिलने आयी

साँप सी बलखाती
हुँकार भी कभी करती है उसी सी
पहाड़ों की मज़बूती आज़माती
काटती है ये आसानी से उन्हें भी
और ये सुन्दर किन्नर प्रदेश
दो भागों में बाँटती है इसे भी


ठीक कहा था चन्दन ने
ये नदी अब महज़ नदी न रही
जलीं हैं इसके किनारे तीन लाशें
ये नदी अब महज़ नदी न रही
इस्पे बने हैं चार बाँध
ये नदी अब महज़ नदी न रही

क्या वेग रहा होगा
जो अब बाँध दिया गया है
क्या तेज रहा होगा
जो अब बाँट दिया गया है
लालच की प्यास ये
कब तक बुझा पाएगी
जिस दिन इसे गुस्सा आएगा
सब खा जाएगी


ये किन्नौर प्रदेश देख तू
देख नेगी का उल्लास
मधुर कंठ सिर पर ठेपंग
रंग बदलता किन्नर कैलाश
बौद्ध-हिन्दू धर्म मिलाप

ऊँचें पहाड़ों में छिपी हुईं
सेब चिलग़ोज़ों की घाटियाँ
सतलुज की काटी हुईं
ये गहरी घाटियाँ
घाटियाँ ये बाणासुर की
जो बलि का पुत्र था हुआ
जिसका गन्धर्व विवाह
कफौर की हिरमा से था हुआ
तत्पश्चात गोरबोरिंग गुफा में
अठाहरां बच्चों का जन्म हुआ
सबसे बड़ी हुई चंडिका
जिसने रोपा में निवास किया
और किन्नर प्रदेश अट्ठारां भागों में
सबमें बाँटा गया


देख यही वो इंद्रकील पर्वत
जहां शंकर-अर्जुन युद्ध हुआ
वीर अर्जुन को जहाँ
पाशुपातास्त्र प्राप्त हुआ
और इसी पर्वत की छत्रछाया में
अनिरुद्ध का ऊषा से विवाह हुआ


ये पर्वत किन्नर कैलाश
आता यहाँ वही
जिसको उसकी तलाश
जो ढूँढ़ता फिरता हो
अंत: प्रकाश
ये कैलाश हैं स्वयं
शिव सन्निकाश


पिछली से पिछली शाम चंडीगढ़ से चले हैं । पिछली सुबह अपने तीसरे साथी से मिले रिकांगपिओ में । कपिल जी, आप कुमारसैन से हैं और एक बहुत अनुभवी ट्रेकर हैं । मात्र 23 साल की उम्र में आप गज़ब का धीरज रखते हैं । अभी आप हमारी फ़िक्र में नीचे गणेश पार्क में टेंट के चक्कर काट रहे होंगे और बार-बार शाम के सूरज में सुनहरी होते पहाड़ों को निहारते होंगे । आपके साथी, यानी की हम आपसे, मेरे अंदाज़े से लगभग 3 घंटे बाद पहुंचे लेकिन हमारे धीर्ग विलम्ब पर पहुँचने पर भी आपने पंद्रह मिनट बोल कर बात को कितनी शालीनता से टाल दिया और माहौल की गर्मजोशी को बनाए रखने के लिए चाय और मैग्गी भी मंगवा ली । इससे आपके संस्कार, चरित्र, आदर्श और जीवन की समझ का पता चलता है ।


खैर मैं निढ़ाल हो चुका था, मैं सीधा टेंट में घुस कर स्लीपिंग बैग में दुबक गया । सिर पर हाथ रखा तो हल्का बुखार लगा । आँखें बंद कीं तो पलकें जल रहीं हैं, मानो थोड़ी देर पहले सोखी हुई सूर्य की ऊष्मा उगल रहीं हों और इस समय मैं जो कुछ भी सोच रहा हूँ वो मैं लिखता चला जा रहा हूँ.....
लेटा हुआ मैं सोच रहा हूँ, सारे घटनाक्रम के बारे में । चंडीगढ़ से रिकांगपिओ शाम 5:50 की बस से चले थे 22 अगस्त को । 23 अगस्त की सुबह रिकांगपिओ पहुंचे और कपिल जी से मिले । फिर वापिस रिकांगपिओ से पोआरी आए । पोआरी सतलुज के एक तरफ है और तंगलिंग दूसरी तरफ़ । हमें तंगलिंग जाना है, वहीँ से यात्रा शुरू होती है । कपिल जी ने थोड़ा होंसला बढ़ाया तो हम झूला पुल से सतलुज पार करने को तैयार हुए । वैसे असली पुल और आगे शोंगटोंग में है । झूला पुल लगभग 100 मीटर लंबा है । पुल के ऊपर झूलते हुए नीचे सतलुज बैतरणी की तरह प्रतीत होती है । दूसरी तरफ़ सीढ़ियां हैं । यहीं से यात्रा शुरू होती है । हम लेट हो चुके हैं । सुबह लगभग साढ़े दस का समय होगा और सूरज प्रचण्ड हो चुका है । थोड़ी ही चढाई चढ़ी थी कि गला सूख गया । मैं और गुरूजी साथ-साथ चल रहे हैं, धीरे-धीरे । एक मोड़ पर दोनों बैठ जाते हैं । पानी कि बोतल में ORS मिलाया जाता है । इसको पीकर थोड़ी राहत मिलती है । आगे पहले ढाबे पर हम फिर से रेस्ट करते हैं । इसके बाद एक नाला आता है ।  यहाँ पानी भरा जाता है । आगे पानी नहीं है और यहाँ दोपहर सिर जलाने वाली । आप सनस्क्रीन लेकर आएं यहाँ ।


नाले के दूसरी तरफ़ से चढ़ते हुए रेकांगपिओ और कल्पा का शानदार नज़ारा दिखता है । बलखाती सतलुज का अपना ही आकर्षण है । अब जंगल है और रास्ता कच्चा । कभी कभार मैं चढाई पर फिसल जाता हूँ । मिट्टी ढीली और भुरभुरी है । चढाई वाकई में काफी तीखी है ।  कुछ कदम चलने के बाद ही रेस्ट लेना पड़ रहा है और मैं और गुरूजी पिछड़ते जा रहे हैं, अपने तीसरे साथी से जो पहाड़ों पर सरपट दौड़ता ही चला जा रहा है । कपिल जी मुझे अपनी छड़ी दे गए हैं । मैं उनका आभारी हूँ ।


काफ़ी मशक्कत के बाद हम गणेश पार्क पहुँचे । शाम के साढ़े तीन बज रहे होंगें शायद । कपिल जी ढाबे में पहले ही पहुँच चुके हैं । हमारे आने तक आप सो चुके थे । आज का डेरा यहीं है । अब आगे गुफ़ा तक पहुँचने कि हिम्मत नहीं है ।


कुछ देर सुस्ता लेने के बाद इधर-उधर घूम-फिर रहे हैं । शाम बहुत हसीं है और सामने कल्पा और पियो का नज़ारा जिसमें सतलुज का अलंकार विशेष शोभा पा रहा है । कुछ चित्र खींचे जा रहे हैं और कुछ किस्से साँझा कर रहे हैं । रात को खाना खाने के बाद हम टेंट में आ गए हैं । ये टेंट खुला है । ठंडी हवा मज़े से आ जा रही है । सुबह 3 बजे का अलार्म लगा लिया है, diamox भी खा ली है । बाकि जो होगा सुबह देखा जाएगा ।

सुबह जल्दी ही निकल पड़े । तीन बजे घुप अँधेरे में । मेरे पास टोर्च नहीं है । मैं बीच में चल रहा हूँ । गुरूजी ताना मार रहे हैं - जला साले मोमबत्ती!!!! टोर्च रखने को बोले थे, मैं मोमबत्ती ले आया । खैर अब मोबाइल की फ्लैशलाइट जला ली है । आगे उतराई है और ओस भी पड़ रही है ।  रास्ता संकरा ही होता चला जा रहा है । आगे झरने की आवाज़ आ रही है । यहाँ ऊपर की तरफ़ एक छोटी गुफ़ा है झरने से पहले । पिछली बार कपिल जी इसमें सोए थे, वो बता रहे हैं । आगे झरना है ।  यहाँ पानी भर रहे हैं । इसके आगे फिर से चढ़ाई है । थोड़ी दूरी पर ही ऊपर गुफ़ा है, इस गुफ़ा के और ऊपर बायीं ओर एक और गुफ़ा है ।  गुफ़ा से आगे पत्थर शुरू हो जाते हैं । शुरुआत में छोटे हैं और यकायक इनका साईज़ बढ़ता ही चला जाता है । पार्वती कुंड तक पहुँचते-पहुँचते हालत खराब हो चुकी है । दिन चढ़ चुका है । पार्वती कुण्ड में कच्छे पड़ें हैं भांति-भांति के । कोई आमूल माचो, कोई रूपा, कोई यंग इंडिया, उधर चट्टान के नीचे जॉकी भी है । ये मान्यता है कि धार्मिक कुण्ड में स्नान करने के बाद वो वस्त्र दोबारा नहीं पहनने हैं और लोग यहीं इनका परित्याग कर गए हैं । ट्रक भर कच्छे हैं यहाँ । पार्वती कुण्ड पर काफ़ी देर रुके । भिगोये हुए चने खाये और काजू, बादाम, किशमिश का भोग लगाया ।


पार्वती कुण्ड से चल पड़े हैं । अब रास्ता बहुत कठिन है । सामने खड़ा पहाड़ है । हाथ-पाओं सबका इस्तेमाल हो रहा है । कुछ ढीले पत्थर भी हैं, सावधान रहें ।  मेरे सिर में दर्द शुरू हो गया है । साँस लेने में भी दिक्कत हो रही है । कपिल जी आगे हैं मैं उनके पीछे चढ़ने कि कोशिश कर रहा हूँ । लेकिन मुझे आराम ज्यादा देर करना पड़ रहा है । मैं फिर से गुरूजी के साथ चढ़ रहा हूँ धीरे-धीरे । आगे चट्टान के नीचे से पतली सुरंग है । बैग पहले ही आगे फेंक दिया है । इसके बीच से निकल रहे हैं । इसके बाद फिर चढाई है । अब चढ़ाई इतनी तीखी है कि नाक भी पहाड़ से रगड़ खा रही है । ऊपर किन्नर कैलाश के दर्शन हो रहे हैं । यहाँ से त्रिमुखी शिवलिंग स्पष्ट दिख रहा है । अब ज़्यादा दूर नहीं है । ऊपर से जयकारों कि आवाज़ आ रही है और ये आवाज़ कपिल जी कि है । वे पहुँच गए हैं । घिसटता हुआ मैं भी आखिर पहुँच ही गया । मेरे आने ही कि देर थी, बारिश शुरू हो गयी । नहीं-नहीं ये बारिश नहीं बर्फ है, बारिश कि बूँदें जम गयीं हैं । हवा भी बहुत तेज़ है यहाँ । कपिल जी निक्कर में ही चढ़ आये हैं । उनको आये आधा घंटा हो गया है । वो नीचे उतरने लगे हैं । मैंने और गुरूजी ने माथा टेका । अब हम भी नीचे उतरने लगे हैं । हम बस पांच मिनट ही ऊपर टिक पाए बारिश और हवा बहुत तेज़ है ।


नीचे उतरना और मुश्किल हो गया है । चट्टानें गीलीं हो चुकीं हैं । पाओं फिसल रहा है । नीचे गिरे तो सीधे ऊपर पहुँच गए समझो । टाँग भी टूट गयी तो भी मौत ही समझो, यहाँ से आपको कोई नहीं उठा कर ले जा सकता । यहाँ से तो लाश भी वापिस नहीं लेकर जाते, "अगर मिले तो", सावधान रहें । धीरे-धीरे हम पार्वती कुण्ड पहुँचे । यहाँ से गुफ़ा तक किसी तरह लटक-लटक के पहुँचे । गुफ़ा में रेस्ट करने के बाद नीचे झरने के पास रुके । यहाँ मैंने चार बोतल पानी गटक लिया है । मुझे ठण्ड लग चुकी है । आगे थोड़ी चढ़ाई है । हमारी हालत के लिए बहुत मुश्किल है । हम धीरे-धीरे रुकते-रुकाते चढ़ रहे हैं। ऊपर चढ़ कर धूप मिली । थोड़ा नीचे उतरे । घास का मखमली बिस्तर और धूप का गर्म कम्बल बिछा पड़ा है और थके हुए को क्या चाहिए । हम दोनों को लेटे हुए काफी देर हो गयी । गुरूजी एक तरफ़ सोए हैं । मेरे सिर में भी काफ़ी दर्द है । मेरा ये अनुभव प्रथम बार था । जनता हूँ ये AMS है । महसूस कर सकता हूँ अपने ही फेफड़ों की तकलीफ़ और सिर जैसे कोई हथौड़ों से पीट रहा हो । लेकिन मैं होश में हूँ या नहीं, ये सच है या सिर्फ मेरा वहम है ?


सामने गणेश पार्क में टेंट दिख रहा है । अभी कुछ देर घास पर लेट कर धूप का आनंद लिया जायेगा । इसके बाद हम नीचे उतरेंगे और रात गणेश पार्क में बिताएंगे । अगली सुबह हम रेकोंगपिओ पहुंचेंगे और इस तरह हमारी किन्नर कैलाश यात्रा सफल होगी । ये वही शाम है । अपने स्लीपिंग बैग में घुसा हुआ मैं यही सोच रहा हूँ कि मैं होश में हूँ या ये सब मेरा भ्रम है । 

होंसला है पस्त
आज हर शह शिकस्त
ढल चुका है सूरज नीचे
पहाड़ के ऊपर पड़े हुए हैं हम
बलहीन अर्द्धमूर्छा में
समेट रहे हैं 
बचा खुचा दम
ऐ रहनुमा !
कैसा ये आज तेरा सितम


सुना है पहाड़ों में 
बूटी चढ़ जाती है 
आज चढ़ गयी
सुना है पहाड़ों में 
भ्रम हो जाता है 
आज हो गया 
सुना है पहाड़ों में
प्रेत मण्डराते हैं
आज कुछ चिमड़ गए
और मेरे सिर पर चढ़ गए
फेफड़ों को चूस ले गए
ये भ्रम है या सच
शायद इस प्रेत को AMS कहते हैं 
आज सामना हो ही गया
खुशनसीब हूँ कि बच गया

एक गोली आती है DIAMOX की खास कर उनके लिए जो मैदानों से सीधी बस पकड़ पहाड़ों में आ जाते हैं ( मेरे जैसे ) और बिना अभ्यस्त हुए यात्रा/ट्रेक शुरू कर देते हैं । ये किसी भी मेडिकल स्टोर पर मिल जाएगी । 3500 मीटर से ऊपर के यात्रा/ट्रेक शुरू करने से 8-12 घंटे पहले एक गोली खा लीजिए । फिर ऊंचाई पर बिताई गयी हर रात को एक गोली लेते रहिए जब तक नीचे उतरना शुरू न कर दें । ये एक ही गोली है AMS से बचने के लिए । मैंने गोली भी खायी थी लेकिन फिर भी मैं इसकी चपेट में आ गया । जिस दिन इसे होना होगा हो जाएगी । बस लक्षण याद रखिए : पहले सिरदर्द होगा फिर साँस लेने में तकलीफ फिर अगर उल्टी हो गयी तो आपके पास बस आधा घंटा है । जल्दी से जल्दी नीचे उतारिए इससे पहले की आपके फेफड़ों में पानी भर जाए और दिमाग में सूजन आ जाए । अपना और अपने साथियों का ध्यान रखें । खास कर तब जब कोई घुटनों में सिर दे कर बैठ जाए ।

यात्रा दूरी सम्बन्धी जानकारी :

पोआरी : रिकांगपियो से 7 Km पहले आता है । आप यहाँ भी उतर सकते हैं, अगर आप पियो में जा कर चाय नाश्ता न करना चाहते हों । कंडक्टर को झूला पुल पर उतारने को बोल दें ।

इसके बाद तंगलिंग से गणेश पार्क = 8 Km
गणेश पार्क से गुफ़ा =  2 Km
गुफ़ा से पार्वती कुण्ड = 3 Km
पार्वती कुण्ड से किन्नर कैलाश = 1 Km

कुल दूरी = 14 Km

शिवलिंग 4800 m कि ऊंचाई पर है । इस यात्रा में यही सबसे ऊँचा स्थान है, जहाँ तक लोग जाते हैं ।

यात्रा खर्च :
चंडीगढ़ से रिकांगपिओ बस टिकट: 660 रुपए प्रतिव्यक्ति (हिम मणि बस )
गणेश पार्क में रहना और खाना : 350 रुपए प्रतिव्यक्ति (एक रात सोना और एक समय का खाना )


तुप्पा ने तपाई दित्ता 
टकीया ने रुआई दित्ता
बट्टे टिल्ले बट्टे बड-बड्डे
ओ भोले
अज तां तरयाया ही चढ़ाई दित्ता 
ऊपरां ही पुजाई दित्ता 
(धूप से तपा दिया 
चढाई ने रुला दिया
पत्थर ढीले पत्थर बहुत बड़े 
हे भोले 
मुझे प्यासा ही चढ़ा दिया
ऊपर ही पहुँचा दिया )


गुमान मान अभिमान 
आज सब तोड़ डाला
देख आज तेरा 
क्या-क्या निचोड़ डाला 
आया था तू बड़े शौक से
देख अब हालत अपनी
आज तुझे ख़ास एक
सबक सिखा डाला

मेरे रहनुमा मैं याद रखूँगा.........