चंडीगढ़ से घर
तक की 250
किलोमीटर की यात्रा
के बाद मैं
अपनी साइकिल घर
छोड़ वापिस चंडीगढ़
आ गया, लेकिन
साइकिलिंग का कीड़ा
तो जाग चुका
था | वापिस आ
के एक सेकिण्ड
हैंड हीरो हॉक
खरीद ली | मेरी
घर तक की
यात्रा का किस्सा
हॉस्टल में ब्रेकिंग
न्यूज़ बन चुका
था | साइकिल
का क्रेज अब
मेरे तक ही
सीमित न था,
मेरे करीबी दोस्त
शुभम जी ने
भी साइकिल खरीद
ली |
आनंदपुर साहिब जाने
का प्रोग्राम तो
हफ्ता पहले से
ही बन गया
था,
लेकिन इंतज़ार
तो बस गुरु
जी के आने
का |
गुरु जी
का ज़िक्र हुआ
है तो उनके
बारे में जितना
बोला जाए कम
ही होगा |
ट्रैकिंग
के उस्ताद और
जिवंत शख्सियत ,
हिमाचल
का तो शायद
ही कोई पहाड़
होगा जो उन्हें
जानता न होगा
|
गुरु जी की
वेबसाइट पर उनके
कारनामे देखे जा
सकते हैं : (
tarungoel.in)|
गुरु जी के
आने बाद प्रोग्राम
पक्का किया गया
और 22 जनवरी
दिन शुक्रवार की
दोपहर करीब 1:30
बजे यात्रा शुरू
की गई |
सेक्टर 12 से
मध्यमार्ग पर चलते
हुए न्यू चंडीगढ़
वाली रोड़ से
कुराली चंडीगढ़ रोड़ पर
पहुंचे | कुराली रोड़ पर
गुड़ बनाने वाली
फैक्ट्री से आधा
किलो गरमा गर्म गुड़
खरीदा और वहां
काम करने वाले
लोगों से बातचीत की |
|
गुड़ फैक्ट्री कुराली रोड |
कुराली पहुंचना
आसान था क्यूंकि
चंडीगढ़ से कुराली
की तरफ ढलान
है | अभी तक
यात्रा एक दम
स्मूथ चल रही
थी लेकिन कुराली
फ्लाईओवर पार करना
तो बहुत मुश्किल
काम था | पहले
तो ट्रैफिक के
साथ फ्लाईओवर के
रोड़ पे चढ़
गए लेकिन जब
ट्रक और बसें
थपकी देकर साइड
लाइन करके जाने
लगीं तो जान
बचने के लिए
साइकिल उठा के
साइड में बने
पेडेस्ट्रियन पाथ पे
चलाने लगे | जब
फ्लाईओवर ख़त्म हुआ
तो एक जोरदार
जम्प के साथ
फ्लाईओवर के पेडेस्ट्रियन
पाथ से सड़क
पर आ गए
| कुराली से रोपड़
करीब 3:30 बजे पहुंचे
और रोपड़ से किरतपुर की तरफ
हो लिए |
शुभम जी की
तो यह पहली
यात्रा थी और
नई साइकिल थोड़ी
भारी भी चल
रही थी बेचारे
बड़ी होशियारी से
अपनी थकान छुपा
रहे थे | मलिकपुर पहुँच
कर हमने साइकिल
एक्सचेंज कर ली
| मलिकपुर से कुछ
दूर आगे नहर
के ऊपर से
फ्लाईओवर है | फ्लाईओवर
के ऊपर से
न जाकर मैंने
साइकिल नीचे से
निकालने की सोची
और फ्लाईओवर से
नीचे वाली रोड़ पे चल पड़ा
| आगे जा के
रोड़ किसी गाँव
की तरफ मुड़ गया
और तब मुझे
एहसास हुआ की
शॉर्टकट तो लॉन्ग
कट बन गया
है | फिर U टर्न
लेकर वापिस सही
रोड़ पे आया
और इस सब
के बीच साइकिल
की घंटी कहीं
गिर चुकी थी
|
घनौली से थोड़ा
आगे जा के
एक जूस वाले
के पास डेरा
जमाया गया | साइकिल का जायज़ा लिया गया | जूस पिने के बाद थकान मिट चुकि थी | हम सभी अपनी
अपनी साइकिल पे
सवार हो गए
और यात्रा फिर
से रिज्यूम की
गई | अँधेरा होने
लगा था |
भरतगढ़ से करीब
3 किलोमीटर पहले
उतराई उतरते समय
यात्रा की टॉप
स्पीड 51 KM/Hr हासिल की गई
| टॉपस्पीड के चक्कर
में मैं काफी
आगे आ गया
था और पसीने
से मेरे कपडे
भी भीग चुके
थे | मैंने सोचा
कहीं रुक के
आग जलायी जाए
और इसी बहाने
नए मैग्नीशियम फ्लिंट
की भी टेस्टिंग
की जाए | साइकिल
सड़क के किनारे
लगा के घासफूस
इकठ्ठा की | आग
जला के जैकेट
सुखाई गई और
गुड खाया गया
| थोड़ी देर आग
सेकने और इंतजार
करने के बाद
गुरु जी और
शुभम जी भी
आ गए |
किरतपुर पहुँच कर शुभम
जी ने रात
वहीँ बिताने का
इरादा जताया लेकिन
गुरु जी और
मैंने बड़ी मुश्किल
से उनको समझा-भुजा के आज
ही यात्रा ख़त्म
करने के लिए
राजी किया | एक
बार फिर से
साइकिल बदल लिए
गए | अँधेरा हो
चुका था और
शुभम जी की
साइकिल लाइटों से चमचमा
रही थी |
किरतपुर से आनंदपुर
की तरफ नरम
चढ़ाई है लेकिन
थकान के मारे
हमने आराम-आराम
से साइकिल चलना
शुरू कर दिया
|
किरतपुर से आनंदपुर
की तरफ बढ़ते
हुए गुरद्वारों के
नाम सिख हिस्ट्री
की कहानियां याद
दिला देते हैं
| आनंदपुर साहिब के दर्शन
हुए तो हम
जोश से भर
गए | करीब 7:30
बजे हम अपनी
मंजिल पे पहुंचे
|
आनंदपुर साहिब पहुंच कर
साइकिल पार्किंग में गड़े
एक खम्भे से
बांध दिए गए
और माथा टेकने
चल पड़े | माथा
टेक कर रहने
का इंतजाम किया
गया |सराय में
तीन लोगों के
लिए कमरा लिया
सिर्फ 100 रूपए
में मिल गया
| कमरे में सामान
रखने के बाद
लंगर छका |
पेट पूजा के
बाद कमरे में
वापिस आ कर
तो हम घोड़े
बेच कर सो
गए |
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