Sunday 12 June 2016

चंडीगढ़ से मोरनी हिल्स (टिक्कर ताल) यात्रा

वन - वन उपवन -
छाया उन्मन - उन्मन गुंजन
नव वय के अलियों का गुंजन !
रुपहले, सुनहले, आम्र, मौर,
नीले, पीले, औ' ताम्र, भौर,
रे गंध - अंध हो ठौर-ठौर
उड़ पाँति-पाँति में चिर उन्मन
करते मधु के वन में गुंजन !
कवि सुमित्रानंदन पंत जी कि यह प्रकृति का वर्णन करती पंक्तियां मोरनी की पहाड़ियों पर यात्रा के दौरान कई बार ज़हन में आ जाती हैं | सुनसान पहाड़ी रास्ता और प्रकृति का सान्निधय बहुत ही रमणीय और मन को शांत करने वाला है | इसके इलवा मोरनी हरियाणा का एक मात्र हिलस्टेशन और सबसे ऊँचा स्थान है |
मोरनी की पहाड़ियों की ऊंचाई 1220 m है |
मोरनी की पहाड़ियों पर जाने का प्रोग्राम अचानक ही बना | 11 जून को सुबह 10 बजे मोरनी जाने का प्लैन बना | सबसे पहली समस्या गियर वाली साइकिल का जुगाड़ करने की थी | खैर वो कोई कठिन काम न था | एक दयालुह्रदय सीनियर, संदीप चौबे जी की हरक्यूलिस रोडीओ (Hercules Roadeo) मेरी सवारी बनी | दूसरी समस्या यह की साइकिल में bottle holder नहीं था | उसका जुगाड़ तस्मे (shoe lace) से बोतल बांध कर, कर दिया गया |
11 बजे मैं 1 लीटर पानी, कैमरा और मोबाइल के साथ निकल पड़ा |
चंडीगढ़ के सेक्टर 12 से पंचकूला और पंचकूला से हिमालयन एक्सप्रेस वे पे पहुंचा | हिमालयन एक्सप्रेस वे के टोल प्लाज़ा से थोड़ा आगे भगवानपुर (चंडीमंदिर) से दाहिने हाथ (राइट साइड) रायपुर की तरफ मुड़ गया |

धूल भरी सड़क और प्रदूषण मेरे स्वागत के लिए बैठे थे | पहला गांव, "बुर्ज कोटियाँ", क्रुशरों के कहर में अपनी सुंदरता खो चूका है | बहुत सारे  क्रेशर तो अब बंद पड़े हैं लेकिन कुल मिला के अगर क्रुशरों की संख्या को देखा जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा की चंडीगढ़, पंचकूला में बन रही बड़ी बड़ी बहुमंज़िला इमारतों के लिए रेत, बजरी यहाँ से ही आती है | क्रेशर ज़ोन की आड़ में 30-40 m तक गहरी खुदाई की जा चुकी है |
खनन का शिकार हुआ बुर्ज कोटियाँ गांव (क्रेशर ज़ोन)

बंद पड़े क्रेशर

खैर चलते चलते मैं थपली पहुंचा | यहाँ से मोरनी तक चढ़ाई है | शुरू के 4 km तो जोश जोश में चढ़ गया, मगर जल्द ही साँस फूल गई | पानी पीने और रेस्ट करने के बाद फिर से  चढ़ाई शुरू कर दी | चढ़ाई तीखी थी तो थोड़ी थोड़ी देर बाद रेस्ट करनी पड़ी और इसी चक्कर में मेरा पानी भी ख़त्म हो गया |

जेठ की दोपहर में सड़क से उठती गरम हवा और सर पे पड़ती धूप सारे ग़म भुला देती है |
अपने मन को मजबूत करके मैं चढ़ाई चढ़ गया और आखिर में जा के एक ढाबा दिखा | पानी और दूध पीने के बाद फिर से चढ़ाई शुरू कर दी |

मोरनी पहुँचने के दो रस्ते हैं | एक पंचकूला, नाड़ा साहिब हो के आता है और दूसरा चंडीमंदिर हो के | पंचकूला वाला रास्ता डबल लेन है और चढ़ाई भी कम है पर लम्बाई अधिक है | मैं ठहरा पहाड़ी बन्दा खड़ी चढाई चढ़ जाऊंगा लेकिन लम्बे रस्ते से नहीं जाऊंगा | जहाँ ये दोनों रस्ते मिलते हैं वहीँ कुछ दुकाने हैं और वहीँ पहुँच कर मुझे पानी नसीब हुआ | अतः आपसे बिनती है की मोरनी की तरफ आने से पहले 4-5 लीटर पानी ले के चलें |
मोरनी अब बस 9 km ही दूर था और चढाई भी इतनी तीखी नहीं रह गई थी | चील के पेड़ और वातावरण  में बदलाव महसूस हो रहा था | मोरनी पहुँचने पर पहला ख्याल तो यहीं से लौट जाने का आया | जितनी चढ़ाई 4:30 घंटे में चड़ी थी उतरने में तो शायद 1:30 ही लगता | लेकिन अभी स्टैमिना बाकि था तो टिक्कर ताल जाने का निर्णय लिया |
मोरनी हिल्स
टिक्कर ताल

टिक्कर ताल मोरनी से 8 km दूर है और मोरनी से यहाँ तक सीधी उतराई ही है | हवा में उड़ता हुआ मैं टिक्कर ताल पहुंचा और सीधा ताल के पास जाकर ब्रेक लगाई | 

3:30 pm पे यात्रा का आधा अध्याय पूरा हुआ | कुछ देर रेस्ट और फोटो खींच लेने के बाद जब सर उठा कर मोरनी की तरफ देखा तो सारा जोश ऐसे उतर गया जैसे गुब्बारे में से हवा | जिस 8 km की उतराई को बड़े मज़े से उतर आया अब उसे चढ़ने की बारी थी | 

 

इस यात्रा का अगला भाग यहाँ पढ़ें


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