Tuesday, 14 June 2016

टिक्करताल (मोरनी) टू चंडीगढ़ रिटर्न यात्रा

मेरा भय नष्ट कर प्रभु! नष्ट कर!
हाँ यही शब्द दोहरा था मैं | टिक्करताल तक तो उतर आया, अब वापिस जाने की बारी थी | 3:20 pm पे पहुंचा था और 3:40 पे वापिस जाने के लिए चल पड़ाजानता था की चढाई चढ़ने में बहुत समय लगने वाला है, सूरज की तपिश और थकान तो पहले ही मुझे निढाल किये जा रही थी | ऐसी स्तिथियों में मैं समय को सबसे अधिक महत्व देता हूँ और जल्द फैसला करता हूँ | ऐसी ही स्तिथि आनंदपुर साहिब से लौटते वक़्त आई थी जब गुरूजी और शुभम जी ने बस से वापिस जाने का फैसला किया, तो मैं जल्दी ही वहां से निकल पड़ा, अगर रुकता तो शायद मैं भी बस में ही आता |
खैर मैंने चढ़ना तो शुरू कर दिया | अभी 500-600 m ही चला था की चढ़ाई के आगे टांगों ने घुटने टेक दिए | समझ गया था की पहाड़ से लड़ना बेकार है इसलिए साइकिल से उतर गया और पैदल यात्रा शुरू कर दी | पहला मील का पत्थर आया तो उसपे लिखा था मोरनी 8 km |
साइकिल हाथ में पकडे और बगल सीट पर धरे, तिरछा हो के धीरे धीरे बढ़ा जा रहा था | बीच बीच में जब लगता की चढ़ाई कम है तो फिर साइकिल पर चढ़ जाता, मगर इससे और अधिक थकान ही हो रही थी, तो पैदल चलना ही मुनासिब समझा | साइकिल से ऊपर नीचे की कश्मकश में तो 2 km चले गए |

अगले मोड़ पे गाय माता से सामना हुआ | पहले तो हम दोनों ही एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर रहे थे, मैंने तो सोच लिया था, अगर गाय माता के प्रकोप का सामना करना पड़ा तो साइकिल छोड़ पहाड़ पे चढ़ जाऊंगा, लेकिन जल्द ही हम दोनों में शांति स्थापित हो गई |

थोड़ी और दूर जाने पर चंडीगढ़ वाले लोग मिले, वही जो दारु के नशे में अक्सर पहाड़ों पर जाने की गरारी अड़ाते हैं | गाड़ी सड़क किनारे लगा के , तेज आवाज़ में खास उन्ही के लिए लिखे गए पंजाबी गीत बजा के , बोनट पे बोतल गिलास रख के भंगड़ा करते हुए | मैं तो साइकिल घसीटे हुए उनके सामने से ऐसे निकला जैसे कलयुग के सामने से सतयुग जा रहा हो |
बीच बीच में होंसला पसत हो जाता तो रुक के रेस्ट करके फिर से चढ़ना शुरू करता | मोरनी अब बस 4 km ही रह गया था |

चढ़ते चढ़ते आधी चढाई चढ़ गया | वहां से नीचे का नज़ारा मनमोहक था | कुछ फोटो लेके फिर से चढ़ने पर फोकस किया |
रास्ते में आते जाते लोगों के लिए में किसी विस्मय से कम नहीं था | खैर सभी ने मेरा होंसला ही बढ़ाया | मोरनी अब बस 4 km ही रह गया था |
आखिर के 2 km दम निकाल देने वाले थे | चढाई तो वैसी ही थी पर मैं थक चुका था |

बस यह आखिरी मोड़ है इसके बाद उतराई ही उतराई है चंडीगढ़ तक !
दिल को यही दिलासा दे दे के मैं वो आखिरी 2 km भी चढ़ गया | 2 घंटे तो टिक्करताल से मोरनी तक की चढाई चढ़ने में ही लग गए |
फिर क्या था? उतराई ही उतराई और मैं साइकिल का जहाज़ बना के उड़ता हुआ जा रहा था | कई गाड़ियों और बाइक सवारों को ओवरटेक तक कर डाला | Youtube पे वीडियो देखें |
जिस चंडीमंदिर से मोरनी तक की चढाई को चढ़ने में 3 घंटे लगे थे उसे उतरने में बस 1 घंटा ही लगा | चंडीमंदिर से पंचकूला और वहां से कॉलेज |
सुबह 11 बजे का निकला में शाम 8 बजे कॉलेज वापिस पहुंचा | रात को बहुत ही मीठी नींद आई जैसे, "मोक्ष प्राप्त हो गया हो" |

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