Monday 19 September 2016

चण्डीगढ़ टू कसौली साइकिल यात्रा भाग-1

उठ फ़रीदा सुत्या
दुनिया देखण जा
शायद कोई मिल जाए बख्शया
तू भी बख्शया जा......
बाबा फ़रीद जी कहते हैं कि उठो और दुनिया देखने जाओ और अगर कोई ऐसा बन्दा मिल जाए जिसने भगवान को पा लिया हो, तो उससे तुम भी यह बख़्शीश ले लो |
बहुत दिनों से कसौली जाने का मन था | जी हाँ वही :
माए नई मेरीए शिमले दी राहें चम्बा कितनी के दूर
शिमले नी बसना "कसौली" नी बसना चम्बे जाना जरूर
-वाली कसौली |
कभी गियर वाली साइकिल का जुगाड़ नहीं होता, तो कभी कोई हमसफ़र नहीं मिलता | खैर 17 सितम्बर कि सुबह मैं अपनी तमाम दिमागी सीमाओं को दरकिनार कर, अकेले ही निकल पड़ा कसौली की ओर, मेरी सेकंड हैण्ड हीरो हॉक (Hero Hawk) पर जिसमें न गियर हैं, न घंटी, न स्टैंड, और ब्रेक भी सिर्फ अगली ही लगती है !
सुबह करीब 6 बजे हॉस्टल से निकल पड़ा | चण्डीगढ़ के 12 सेक्टर से नयागांव होते हुए बद्दी रोड़ (करोरां) पे चलने लगा |


यह रोड़ शॉर्टकट है, माने "चोर रास्ता" शिमला से आने/जाने वाले जानकर लोग और टिप्पर/ट्रक यहाँ से निकल के टोल टैक्स बचाते हैं और सीधा पिंजौर निकलते हैं | खैर रोड़ बहुत ही ख़राब है | इसी रास्ते को सांप की तरह लपेट रखा है पटियाला की राओ (बरसाती नाला) ने | रास्ते में दो जगाहें ऐसी हैं कि रेत के ऊपर साइकिल चलानी पड़ती है और साइकिल मछली कि पूँछ कि तरह हिलती है | इसी सड़क पे आखिर में चढ़ाई है और अक्सर मैं प्रैक्टिस करने यहाँ तक आता हूँ |



कुछ और आगे चल के यह सड़क बद्दी-नालागढ़ हाईवे से मिल जाती है | यहाँ से मैं पिंजौर कि तरफ चलने लगा | लोहगढ़ फाटक से बायीं ओर, रेलवे ट्रैक के साथ-साथ बने रोड़ पे हो लिया ओर यह रोड़ सीधा जीरकपुर-पंचकूला-कालका हाईवे पे मिल गया | करीब 8 बजे कालका पहुँच कर एक स्थानीय अधेड़ उम्र व्यक्ति से इत्मिनान से बात की |



मेरी साइकिल को देख के उनका पहला सवाल यह था,
"इस पे जाओगे कसौली" ?
हाँ जी, इसी पे जाऊंगा और जाने के लिए साइकिल नहीं "जिगरा" लगता है |
बात तो तुम्हारी सही है बहुत जाते हैं कसौली, "चंडीगढ़ के फ़ौक़े फेंटर (कागज़ी शेर)", पर आज की पीढ़ी में वो दम नहीं और उनहोंने बीड़ी का एक लंबा कश भरा और खांसते-खांसते उनकी पहाड़ों में बीती उम्र के तमाम लम्हें मानो साँस के साथ खींच लिए गए हों, फेफड़ों के गर्त तक और गहराई से गला साफ़ कर थूक दिए, हमारी पीढ़ी पे |
मैंने उनसे पूछा सबसे छोटा और कठिन चढ़ाई वाला रास्ता कौन सा है ? उन्होंने मुझे ओल्ड कसौली रोड़ वया जंगेशु, मशोबरा से जाने को कहा |
पानी पीने के बाद पूरा रास्ता रटता हुआ मैं चल पड़ा ,कालका से परवाणू |



परवाणू में मोरपेन फैक्ट्री से थोड़ा आगे तीखा बहिना मोड़ लेके मैं सीधे कसौली के रास्ते पे पहुँच गया | "उस मोड़ से बस उसी सड़क पे रहना, कहीं मत मुड़ना, ताँगे में जुते हुए घोड़े की तरह सामने ही देखना, पहाड़ों की ओर, वही आशीर्वाद देंगे और शक्ति भी !" ऐसा ही कहा था, उस धूप में झुलसे चेहरे वाले अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने, जिन्होंने बहुत सरल शब्दों में अपने तीखे व्यंग से मेरी पहाड़ से लड़ने की हेकड़ी तोड़ के रख दी |



सुनसान पहाड़ी सड़क और नीचे बहते नाले की आवाज़
जो कभी-कभार दब जाती, किसी गाड़ी के आने पे
जो रौंद डालती है, पहाड़ों का सन्नाटा
अपने हाँफते ईंजन की आवाज़ से
और ढक देती है, हरयाली को
धूल की परत से
और मैं बना लेता, उधार के गमछे का पोंछा
और पोंछता अपना भविष्य
ताकि दिख जाए मुझे कुछ
चश्मे के उस पार
जो लगा रखा है हम सब ने
अपनी आँखों पे



आधा घण्टा हो गया पैदल चलते-चलते, भाई चढ़ाई तीखी है और साइकिल देसी | जब थकान से हार कर बैठने ही वाला था कि तभी दिख गया यह मील का पत्थर और हो गया मैं खुश| 12 बस 12 km ही तो है और लगाने लगा अपना ही हिसाब, मंज़िल तक पहुँचने में लगने वाले वक़्त का!!!



तभी नज़र गयी बदल चुकी वनस्पति पे | जाने पहचाने पौधे दिखे और घर जैसा एहसास होने लगा | ये पंचफूली, ये गान्दला, ये बसूँटी और ये जबलोठा जिसके पत्ते कि डंडी को तोड़ के बुलबुले फुलाये थे बच्च्पन में | लेकिन ये सब गायब हो रहे थे धीरे-धीरे और दूर नज़र आ रहे थे और ऊंचाई पे उगने वाले चीड़ के पेड़ |

प्रकृति के नज़ारे देखता हुआ पहुँच गया मैं, झरने के पास जो डरा रहा है अपनी भारी आवाज़ से ठीक उस खुजली वाले कुत्ते की तरह, जिसे हर कोई मार जाता है पत्थर और वो चाहता है, एकांत ताकि अपने ज़ख़्म भर सके | मगर उसे कोई चैन से बैठने भी तो नहीं देता, चढ़े रहते हैं लोग उसपे हाथ मैं बरगर लिए, सेल्फी खिंचाने को और बढ़ा देते हैं उसकी खुजली और भी, उस पर कूड़ा फेंक कर !!!!!!!



सजन रे झूठ मत बोलो
खुदा के पास जाना है
न हाथी है न घोडा है
वहां पैदल ही जाना है
हाँ भाई पैदल ही चल रहा हूँ उस 12 km वाले मील के पत्थर से और गुनगुना रहा हूँ यह गाना | एक बार तो मन में यह ख्याल आया की पंगा काफी बड़ा ले लिया पर अब तो कसौली पहुँच के ही मुड़ना है और जितनी तीखी चढाई है उतनी मीठी उतराई भी तो होगी | खैर अब मैं वापिस आ गया हूँ तो यही कहूंगा कि, "बहुत मज़ा आया" |




कसौली 7 km इस मील के पत्थर पे नज़र बाद में पड़ी पहले रेन शेल्टर दिख गया |मैं तो बैठ गया यहाँ और दोनों बोतलों में लाया सारा पानी पी गया | अभी 7 km और चलना जो था वो भी पैदल साइकिल हाथ में लिए |



खैर प्रकृति के नज़ारे लेता हुआ मैं मशोबरा पहुँच गया और कसौली अब बस 3 km ही दूर था |



आधे घंटे में कसौली भी आ गया | कसौली पहुँचने पर सबसे पहले स्वागत किया कूड़े के अम्बार ने | गमछा नाक पर दबाए वो 200 m का इलाका, जिसको टीन की दीवार से ढक दिया गया है ताकि कारों में जाते लोगों को गंदगी न दिखाई दे और पहाड़ी सौन्दर्य का रसपान करने में मगन, पिज़्ज़ा खाते लोगों को खट्टी डकार न आ जाए |




बस स्टैंड से ऊपर की तरफ़ बाजार में जा के ब्रेक लगाई और आधा दर्जन केले और 3 सेब (आधा किलो) ले लिये और पास ही लगे बेंच पर बैठ खाने लगा |


केले खा चूका था एक सेब आधा ख़त्म था कि बंदर आ गए, मैं आधा सेब मुंह में दबाये और दो सेब वाला थैला हाथ में लिए साइकिल उठा के भगा | अब ब्रेक सीधा सनराईज़ पॉइंट पे लगाई |

यहाँ इत्मिनान से बैठ कर बचे हुए सेब खाए | यात्रा का आधा अध्याय समाप्त हो चूका था और सड़क पर टहलते हुए मंकी पॉइंट कि ओर जाते लोग मुझे ओर मेरी साइकिल को देख कर शायद यही सोच रहे थे :

जैसे कोई लिए जा रहा हो ऊँट पहाड़ों में
जैसे कोई चरा रहा हो याक थारों में
जैसे चल रहा हो कोई जूते सर पे रख कर
जैसे रगड़ रहा हो कोई आग के लिए पत्थर
थक चूका हूँ लेकि जिगरा-ए-जोश हूँ
हाँ मैं ऐसा, खानाबदोश हूँ

हम नहीं जानते हैं, कि रोटी कितनी कीमती
मिल जो जाती है हमें, कर विनम्र विनती
(मम्मी खाना ला दो प्लीज़)
जब चढ़ना पड़ता है पहाड़ आटे की बोरी पीठ पे लाद के
नीचे लाले की दूकान और घर ऊपर चोटी पहाड़ पे
पसीने से गुंथ जाता है आटा पीठ की परात में
तब जा के जलता है चूल्हा पहाड़ में
मैं उस बेहोशी से सुलगते
चूल्हे का होश हूँ
हाँ मैं ऐसा खानाबदोश हूँ

मैं नहीं करता किसी की मज़दूरी
लालच से भी रखी है मैंने कोसों दूरी
न बेचता हूँ मैं अपने पहाड़ों की मज़बूरी
चराता हूँ मैं भेडें, घर छोड़-छाड़ के
कहते हैं मुझे गद्दी, हैं पहाड़ी मिज़ाज़ के
पक्के हैं हम पूरे अपने रीती-रिवाज़ के
उठा नहीं हूँ, अब भी ज़मींदोज़ हूँ
हाँ मैं ऐसा खानाबदोश हूँ


15 comments:

  1. सौरभ जी बेहतरीन कल्पना , शानदार शब्दों का संयोजन , सार्थक लयबद्धता के साथ उत्तम यात्रा विवरण । बस कही कही भाषा गत अशुद्धियाँ अखरी । आशा है, आगे सुधार मिलेगा । बधाई और शुभकामनाओं के साथ
    www.bebkoof.blogspot.com

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  2. जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | बस इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहियेगा |

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  3. वाह...!! बहुत खुब
    शानदार शब्द संयोजन व तस्वीरें

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  4. वाह...!! बहुत खुब
    शानदार शब्द संयोजन व तस्वीरें

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  5. बढ़िया कोशिश है !!

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  6. Amazing!
    I love your poetic prose.
    It's a treat to read.
    Keep it up 👍

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. यात्रा वृतांत की बढिया काव्यात्मक शैली, सिर्फ फोंट सेटिंग थोड़ी गड़बड़ है। बाकी सब एक नम्बर। :)

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  9. boht badiya!! Bina gear wali cycle lekar jana himmat ka kaam hai!!

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  10. बहुत बेहतरीन प्रयास है।लगे रहो।

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  11. बेहतरीन लेखन मात्र पढ़कर ही मन रोमांच से भर उठता है आपकी इस यात्रा और आगामी यात्रा के लिए शुभकामनाये

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  12. हमेशा की तरह बहुत ही अद्भत और अद्वित लिखा है शर्मा जी , अलग ही आनंद आया पढ़ कर । लिखते रहो , लिखते रहो ।

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  13. जी आप सभी का सह्रदय धन्यवाद
    आप सभी के सुझावों पे अमल करने कि कोशिश करूँगा जी
    इसी यात्रा का भाग-2 पढ़िए https://cyclereturns.blogspot.in/2016/09/2.html पर
    आपकी अनुभूतियों का इंतज़ार रहेगा...........

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  14. बहुत खूब .. मुझे बहुत अच्छा लगा पढ़कर और साइकिल पैदल घसीटते रहे "जिगरा" हैं भाई .. "जिगरा" .. बहुत अच्छी शुरुआत हैं आगे और रोचक यात्रायें मिलेगी पढने को ऐसी आशा हैं

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