Wednesday, 31 August 2016

दिमाग की लड़ाई


थकान से चूर रुक गया है मुसाफिर
साँस की भी साँस चढ़ चुकी है
बदन है पसीने से तर
होंठों की नमी भी सूख चुकी है
खड़ा है लेकिन बैठता नहीं
जानता है बैठ गया तो
बैठा ही रह जायेगा
क्या सोच रहा है वो ?
क्या चल रहा है उसके ज़ेहन में ?
शरीर तो दम ले लेगा रुकने पे
लेकिन क्या वो दिमाग को मना पायेगा
की चलता रहे अपनी मंज़िल की ओर
शायद जानता है वो रहस्य
की लड़ाई तो सारी "दिमाग की है".......
आज दिमाग, सोच और नज़रिये की बात करते हैं | भगवान ने हम सब को एक इच्छयाशक्ति रूपी ब्रह्मास्त्र दिया है और ये ऐसी चीज़ है जो जहन्नुम को जन्नत और जन्नत को जहन्नुम बना सकती है | मेरा एक फार्मूला है जो मैं आपको आखिर मैं बताऊंगा, उससे पहले कुछ अनुभव साँझा कर रहा हूँ |
30 दिसम्बर 2015 के दिन जब मैं अपने घर गांव इंदपुर, तहसील इंदौरा, जिला काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश, जो कि चंडीगढ़ से 243 Km दूर है; साइकिल से गया था तो घर पहुँचने के बाद मैंने अपना स्टेटस अपडेट किया था जो कि इस प्रकार था, "When you travel alone your mind is your only enemy"
मेरे गुरुजी श्रीमान तरुण गोयल जी ने वो स्टेटस पड़ा और मुझे ब्लॉग लिखने को कहा, उस स्टेटस के माध्यम से मैं जो बात कहना चाहता था, वो उन तक पहुँच गयी थी | पहले मैं टाल मटोल करता रहा लेकिन कुछ लोग होते हैं जिनकी इज्ज़त स्वतः ही आपके ज़ेहन में बन जाती है, गुरूजी भी उन्ही शख्सियतों में से हैं और मैं मना नहीं कर सका | 2:30 घंटे में मैंने पूरी कहानी लिख डाली | मेरे ब्लॉग की सबसे पहली कहानी, अक्सर मैं उसे पढ़ता हूँ और अपनी गल्तियों को देखता हूँ लेकिन उससे ज्यादा मैं अपने होंसले को देखता हूँ कि मैं 243 Km चला गया, कैसे ?
उस समय तो मैं शारीरिक रूप से भी फिट नहीं था तो फिर कैसे मैं 243 Km चला गया ? आज जब मैं यह कारनामा कर चुका हूँ तो कह सकता हूँ कि, "बहुत मज़ा आया" |
मैंने एक साइकिल ली थी 5300 कि; एक हफ्ता चलाई और मन किया कि इस साइकिल पे कुछ बड़ा किया जाए | नए साल का दौर था तो मन किया कि घर ही चला जाए | 30 दिसम्बर को सुबह 6 बजे मैं अपने हॉस्टल से निकल गया घर के लिए बाकि कहानी तो आप यहाँ पढ़ सकते हैं लेकिन आज के विषय पे ध्यान दें तो महत्त्व्पूर्ण बात यह होगी कि वो क्या चीज़ थी जिसने मुझे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया ?
खैर इस प्रश्न का मैं जवाब दूंगा कि वो मेरे ज़ेहन कि ज़रूरत थी, शायद कुछ था जो मुझे ऐसा करने के लिए कुछ वक़्त से प्रेरित कर रहा था | जब भी मैं साइकिल चलता मुझे लगता मैं लंबे समय तक साइकिल का साथ निभा सकता हूँ | 30 दिसम्बर कि रात को तो मैं सो भी नहीं पाया, सोच तो लिया था कि घर जाऊंगा लेकिन डर तो लगता ही है ऐसा पंगा लेने में | खैर सब कुशल मंगल रहा और अब मैं कह सकता हूँ कि, "बहुत मज़ा आया" |
चलिए अब बात करते हैं इंसानी शरीर की क्षमता की; मेरा मानना है कि आपकी शारीरिक ताक़त सिर्फ 40 % मायने रखती है बाकि 60% आपकी इच्छयाशक्ति | आपने एवेरेस्ट पे बिना किसी साज़ो सामान के रात बिताते पर्वत आरोहियों के किस्से जरूर सुने होंगे | तो वो क्या चीज़ थी कि वो बिना आशियाने के ठण्ड सेहन कर सके ?
यही इच्छयाशक्ति का चमत्कार है जो ठण्ड का सामना हो या बीहड़ों में ज़िंदा रहना सब परिस्थितियों में आपको नवीन ऊर्जा प्रदान करता है | जब आप थक हार के निढ़ाल हो के बैठ जाते हैं और तमाम तरह कि बातें आपके ज़ेहन में आती हैं तब यह मंज़िल तक पहुँचने कि पक्की इच्छयाशक्ति ही होती हो जो आपको उठाती है चलते रहने को बोलती है और मेरे साथ जब भी ऐसा हुआ है तो मैंने महसूस किया है अपने अंदर एक नवीन उर्ज़ा को, मंज़िल तक पहुँचने कि एक लालसा को जो कि मेरे स्वभाव और चरित्र में आम तौर पे नज़र नहीं आती |
चलिए अब बात करतें हैं नकारात्मक सोच की , अक्सर लोग थक जाने पे कहते हैं कि हमसे नहीं होगा, अब बस, मैं जा रहा वापिस, अब मैं नहीं बढ़ सकता, आगे तुम चलो, मैं रेस्ट करके आता हूँ | सबसे पहले तो नकारात्मक सोच ही हावी होती है और हम बैठ जाते हैं और फिर उठने का मन ही नहीं करता ऐसे समय में मैं सोचता हूँ उस ख़ुशी और संतुष्टि के बारे में, जो मंज़िल तक पहुँचने पे मिलेगी | कल्पनात्मक ही सही लेकिन यह बहुत फायदेमंद साबित हुआ है, मेरा आज़माया हुआ तरीका है और यही वो फार्मूला है जिसके बारे में मैंने शुरुआत में बात कि थी | चलिए अब आखिर में मैं यही कहूंगा की सड़क, पहाड़ और बीहड़ किसी के रिश्तेदार नहीं, हमेशा चौकन्ने रहें |
मन के हारे हार है और मन के जीते जीत
गीत नया गाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से , फूटे बसंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झड़े सब पीले पात, कोयल की कुहक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतः की चिर व्यथा, पलकों पर ठिठकी
हार नही मानूँगा , रार नई ठानूँगा
काल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
(अटल बिहारी वाजपेयी)

नोट: इस पोस्ट में तमाम जानकारी व्यक्तिगत अनुभवों पे आधारित है| कृपया विवेक से काम लें |

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