हेल्लो : हाँ भाईसाहब तैयार हो
हाँजी बस साइकिल निकाल रहा हूँ
आप भी तैयार हो जाइए
15 मिनट में, मैं आ रहा हूँ
समय से पहुँच गया
हमसफ़र शुभम नहा रहा था
वैदिक मंत्र गा रहा था
पूरा पंडित है
चोटी भी रखता है
चश्मा लगता है
टोपी पे फंसा के
अक्सर भूल जाता है
15 अक्टूबर 2016
सुबह 7 बजे हम निकाल पड़े
स्कूटर पे सवार हैं
बस स्टैंड जाना है
आज पहाड़ घूमना है
दोनों तैयार हैं
चंडीगढ़ 43 सेक्टर बस स्टैंड
स्कूटर लगा पार्किंग में
बस में चढ़ गए
शिमला की बस है
हमें सोलन जाना है
सोलन से थोड़ा आगे
चम्बाघाट उतर जाना है
100 की टिकट ली (प्रतिव्यक्ति)
तीन वाली सीट मिली
थोड़ी देर बाद
बस चली
कालका पहुंचे जाम लग गया
सड़क पर गाड़ियों का अम्बार लग गया
घण्टा बर्बाद हुआ
चेहरा लाल हुआ
4-5 श्लोक निकले
बामुश्किल जाम से निकले
अब रास्ता साफ़ है
पर धर्मपुर में बस फिर रुक गई
इसको शिमला जाना है
ढ़ाबे पे खाना खाना है
फिर मंज़िल तक पहुँचाना है
खैर पहुंचे हम खुम्ब देश सोलन
यहाँ पहाड़ों को देख
मोहित हुआ मन
थोड़ी और आगे चम्बाघाट है
वहां उतरना है
नाश्ता करना है
फिर आगे बढ़ना है
10 बजे चम्बाघाट पहुंचे
सामने लक्ष्मीबाई की प्रतिमा है
पीछे पहाड़ है
इमारतों से लदा हुआ
पूरा बर्बाद है
कुछ पल सुकून के बिताए
ढ़ाबे पे चाय-परांठे खाए
100 रुपये बिल बना
पेट लेकिन पूरा भरा
अब तैयार हैं चलने के लिए
सामने पहाड़ है विचरने के लिए
रास्ता मालूम किया
बोतलों में पानी भरा
हांजी बोतलों में पानी भरा
बहुत जरुरी है
रास्ते में सब सूखा है
2 लीटर हरेक लिए
आधा दर्जन केले भी
देख के लिए
चलो अब हम चल दिए
रास्ता पहले पक्का है
फिर कच्चा है
फिर तो है पगडण्डी
ऊपर चढ़ते जाओ
गीत ख़ुशी के गाते जाओ
अब अंत है बस्ती का
रास्ता संकरा अब मंज़िल का
ध्यान से पहचान करना
सीधा पहाड़ ही चढ़ना
हम तो चल पड़े
थोड़ी देर बाद ही खो गए
रास्ता कहाँ है ?
यहाँ तो जंगल ही जंगल है
शुभम यार जाना किधर है
बुरे वक़्त मैं गुरूजी याद आये
फ़ोन किया गया
और गूगल का समर्थन लिया गया
फिर जा के अंदाज़ा लगाया
अब सच ही बोलूंगा
मैंने अपना रास्ता बनाया
चलते-चलते आगे अपने रास्ते पर
एक रास्ता और मिल गया
यही सही है
कचरे स्वपरूप
पुख़्ता सबूत जो मिल गया
हाँ भाई चल अब
ज्यादा पानी ना पी
गला तर रख़
घूँट पी नहीं
बस मुँह में भर रख़
सही रास्ता है यह
इसका एक सबूत और मिल गया
जगह-जगह पेड़ों पर
लाल कपडा बँधा दिख गया
बस अब क्या है
निशान की ओर चलते जाओ
गीत ख़ुशी के गाते जाओ
भरी दोपहरी में
अँधेरा जंगल है
धूप नहीं आती यहाँ
डरावना मंज़र है
फिर तीतर की आवाज़ भी
तेंदुए की आहट लगती है
हवा की घूँ-घूँ भी
राक्षसी लगती है
खैर
मुश्किल रास्ते में नहीं
ज़ेहन में होती है
डराती है
धमकाती है
पैर जकड़ती है
है पार पाना
थोड़ा हिम्मत का काम
रखो थोड़ा होंसला
ओर चलो सीना तान
रहनुमा जो मेरा मेरे साथ चलता है
हस के मेरी हर मुश्किल को
दरकिनार करता है
वो बसा है सभी में
हैं सभी उसके
हाथ बढ़ा मदद तो मांग
वो सहायता करता है
है रहस्य गूढ़
समझना समझ के
ये उलझन है ऐसी की
उलझना सुलझ के
लीला है उसकी बड़ी ही निराली
वही है सूरज की लाली
है पेड़ों कि हरियाली
है वही कण कण में विद्यमान
फिर भी
क्यों इंसान को
है इतना अभिमान ?
समझना है उसको
तो समझो तुम खुद को
वही मंज़िल है
रास्ता भी वही है
बस उसी को मिलता है
जिसने दुनिया कि नहीं
उसकी सुनी है
रहनुमा जो मेरा मेरे साथ चलता है
पेहले भटकता है
फिर मेरा हाथ पकड़ता है
खैर
पहुंचे हम मंदिर तक
वहां और यात्री मिले
पता चला उनसे कि
एक मंदिर और है
थोड़ा है नीचे
मशहूर बहुत है
वहां ही है वो गुफा
पांडवों कि
जहाँ बितायी उन्होंने
घड़ियाँ वो अज्ञातवास कि
गुफा है ये निराली
लंबी बहुत है
कहते हैं एक छोर है सोलन
दूसरा पिंजौर है
हाँ भाई,
मिल गई मंज़िल अब चलें वापिस
हुए वहां से रुखसत
कह खुदाहाफिस
भटके थे थोड़ा शायद
अभी भटकना और था
चल पड़े गलत राह
प्रभु का इम्तिहान
एक और था
राह तो ख़त्म हो गई
आगे जा के
भगवान ने फिर सही राह दिखाई
सन्नाटा-ए-जंगल में
इंसानी आवाज़ आयी
दिख गई सही राह
जो थी उस पार
कुछ मुसाफिर जो उस पे
गुज़र रहे थे
थे मशगूल
आपस में झगड़ रहे थे
आये जो लौट के
फिर दुरुस्त राह पकड़ी
फिर ऊँगली मेरे रहनुमा ने
भी मेरी ऐसी जकड़ी
सीधा जा के कंडाघाट उतारा
बेबस हैं हम सब
साजिश ये सब है उसकी
ये जंगल उसी का
ये ज़मीन उसकी
उसी का दिया है
जो भी मिला है
उसकी मर्ज़ी के बिना
कभी पत्ता भी हिला है ?
कंडाघाट से फिर
हम सोलन पहुंचे
खाए रसगुले और
समोसे दबोचे
फिर पकड़ी बस सीधा चण्डीगढ़ कि
अभी बाकी थी एक खुराफात
शैतानी मन कि
26 के चौक़ पे उतारने को
जो कंडक्टर ना था राज़ी
हम भी तो थे, थोड़े मनमौजी
शुभम जी ने अपनी सीटी फिर बजाई
एक दम बस रुक गई
ड्राइवर को समझ नहीं आयी
सीटी किसने है बजाई ?
हम तो उतर गए अपना झोला उठा के
कंडक्टर देखता रहा
खिड़की से मुंह उठा के
वही है जो इन्साफ करता
शैतानी दिमाग में ऐसे ख्याल भरता
वही जो रखता है हम सबका ख्याल
वही जनता है सबका सूरत-ए-हाल
वही है जो दूध का दूध
और पानी का पानी करता है
रहनुमा जो मेरा मेरे साथ चलता है
रहनुमा जो मेरा मेरे साथ चलता है
ना मैं पर्यटक
ना मैं घुमक्कड़
ना मैं मुसाफिर
ना मैं यायावर
कौन हूँ मैं ?
क्या अस्तित्व है मेरा ?
क्या है ये धरती ?
यहाँ क्या है काम मेरा ?
बंदा तो यही सवाल लिए फिरता है
रहनुमा जो मेरा मेरे साथ चलता है
रहनुमा जो मेरा मेरे साथ चलता है
बहुत ही बेहतरीन अंदाज़ में लिखा है कहानी को👌
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