दसवीं और ग्याहरवीं सदी के मध्य में कुल्लू, काँगड़ा और सुकेत के सीमावर्ती दूरदराज क्षेत्र में मण्डी नामक छोटे से कसबे का जन्म हुआ | सोहलवीं सदी तक आते आते ये एक शक्तिशाली राज्य के रूप में विकसित हुआ | राजा अजबर सेन ने ब्यास नदी के दूसरी तरफ के इलाके जीत कर वहाँ एक शहर बसाया जिसे आप आज की मण्डी के रूप में देख सकते हैं | सबसे पहले भूतनाथ मंदिर का निर्माण किया गया फिर राजमहल बनाया गया | सन 1648, राजा सूर्य सेन ने, जिन्होंने आपने 18 पुत्रों को अपने जीवन काल में मरते देखा, मण्डी की रियासत को ऐसे महाराजा के अधीन कर दिया जो समय से परे है, जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त है | माधोराय, भगवान श्री कृष्ण की चाँदी की प्रतिमा को मण्डी का सारा कार्यभार सौंप दिया गया और उनके अधीन ही अगले उत्तराधिकारी राज करते रहे | खैर, इसका एक असर ये भी हुआ की मण्डी की शिवरात्रि जो पहले केवल धार्मिक महत्व की थी अब उसका राजनीतिकरण भी हो गया | आज भी माधोराय शिवरात्रि मेले के पहले दिन भूतनाथ जी के मंदिर में जाकर पूजा करते हैं | पूजा संपन्न होने के बाद माधोराय आये हुए सभी देवतों से मिलते हैं | मिलने का क्रम पहले से तय है | सबसे पहले पराशर ऋषि जी से मिलन होता है | 2017 की इस शिवरात्रि में पराशर ऋषि जी का 22 साल बाद आगमन हुआ |
(पहला गीत)
(1)
हो उच्याँ पाडाँ पर
हो उच्याँ पाडाँ देवते जे बसे ने
हो कुन्नि वो
हो कुन्नि वो ठकाने इन्हां जो दसे ने
इन्हां जो दसे ने
हो ऊँचे
हाँ ऊँचे पहाड़ों पर देवतों का राज हैं
किसने हो
हाँ किसने किया इनको यहाँ विराजमान है
किया विराजमान है
हिमालय की चोटियों के नाम हों या वहाँ बसने वाले गाँव कस्बों के नाम आपको हर जगह देवते मिल ही जायेंगे | उदहारण के लिए मंडी का नाम ही ले लीजिए जो कि ऋषि मांडव के नाम पर रखा गया है | अक्सर मैं सोचता हूँ कि किसने ऋषि मुनियों को हिमालय कि राह दिखाई होगी, किसने इतने सारे देवी-देवताओं को पहाड़ों कि चोटियों पर विराजमान किया, किसने पांडवों को स्वर्ग का राह बताया, किसने बीहड़ों में ऐसे भव्य मंदिर बनवाए | आखिर क्या चीज़ है जो भटकते मन को स्वतः ही पहाड़ों की ओर खींच लाती है |
(2)
हो फागण महीने दी हो फागण महीने दी
रात तेरवीं आयी चली है
सादा जे आया तयारी पूरी चली है
तयारी पूरी चली है
फागुन मास की हो फागुन मास की
रात तेरहरवीं आने वाली है
न्योता भी आ गया है तैयारी भी होने वाली है
होने वाली है
आस-पास के सभी देवी-देवतों को शिवरात्रि मेले में आगमन के लिए न्योता भेजा जाता है | कुछ आते हैं कुछ नहीं आते | पुराने समय में ये सीमाओं का निर्धारण करने का भी एक तरीका था |
(3)
हो तान जे
हो तान जे बसुदिया दी लम्मी लम्मी लायी ऐ
हो चोट जे
हो चोट जे नगाड़े की निग्गर जे बायी है
निग्गर बायी है
तान लंबी वाद्य यंत्रों की जैसे लंबी आवाज़ लगाई है
और आवाज़ नगाड़ों की कितनी ज़ोर से आयी है
ज़ोर से आयी है
देवते के वाद्य वादक या बजंतरी देवते के वाद्य यंत्रों को जोर-शोर से बजाते हैं | ताकि सभी को पता चल जाए देवता आने वाला है |
(4)
हो पालकी जे
हो पालकी जे बाँकी देवते दी शिंगारी है
हो कुत्थु ओ हाँ कुत्थु ओ
हो कुत्थु ओ जाना कुदरे दी तैयारी है
कुदरे दी तैयारी है
पालकी ये निराली कितनी सुन्दर श्रृंगारी है
किधर को हाँ कहाँ को
किधर है जाना किधर की तैयारी है
किधर की तैयारी है
(5)
हो पालकी जे डोलदी नच्ची चली है
मंडिया शिवरात्र हो मंडिया शिवरात्र
मंडिया शिवरात्र गई लग्गी है
गई लग्गी है
पालकी ये हाँ पालकी ये
नाचती डोलती चली है
मण्डी में शिवरात्रि
मण्डी में शिवरात्रि शुरू होने लगी है
शुरू होने लगी है
(6)
हो पाड़ बड़ा करड़ा
हो पाड़ बड़ा करड़ा रख निगाह मालका
हो जाना वो हो जाना वो
हो जाना वो मंडिया दे दम मालका
दे दम मालका
ये पहाड़ी रास्ता है मुश्किल
ये रास्ता है मुश्किल ध्यान रखना भगवान
और मण्डी तक जाना है
होंसला भी पूरा रखना भगवान
(7)
हो पड्डल मैदाना च
हो पड्डल मैदाना च देवते विराजे ने
ओआरे पारे दे ओआरे पारे दे मिले
बजे गाजे बाजे ने बजे गाजे बाजे ने
गाजे बाजे ने
हो पड्डल मैदान में देवते विराजे हैं
देवते विराजे हैं
इस पार के उस पार से मिले
जोर-शोर से बजे
पुरे जोर से बजे बाजे हैं
बजे बाजे हैं
सभी देवते पड्डल मैदान में एकत्रित होते हैं | अक्सर कुछ देव व्यास नदी के इस पार तो कुछ उस पार विराजते हैं | ये समय केवल उनके ही नहीं बल्कि सामाजिक मिलन का भी है |
(8)
हो बखरे जे बज्जे बाजे बखरी धुन बज्जि है
हो इक दिन पहले ही बड़ा देव गया पुज्जी है
गया पुज्जी है
हो माधो राय ने हो माधो राय ने
हो माधो राय ने बड़ा देव गया मिली है
हो टारना जे
हो टारना जे बैठा पूरी मण्डी दिखी है
पूरी शिवरात्र दिखी है
शिवरात्र दिखी है
अलग ही धुन सुनाई दी
अलग ही धुन बजी है
एक दिन पूर्व बड़े देव का आगमन हुआ
देव कमरुनाग का राजा माधोराय से मिलन हुआ
फिर इजाज़त ले वो टारना की पहाड़ी पे चले गए
वहीँ से फिर पूरी मण्डी शिवरात्रि का दिव्यदर्शन हुआ
शिवरात्रि का दिव्यदर्शन किया
पुरे राज्य के बारिश के देवता कमरुनाग हैं | इनका आगमन सबसे पहले होता है और इनके वाद्य यंत्रों की धुन शिवरात्रि में आये सभी देवतों की धुन से अलग होती है इसलिए इनको कोई भी आसानी से पहचान लेता है | बड़े देव कमरुनाग की कोई पालकी नहीं आती, बस एक देवचिन्ह आता है | बड़े देव भूतनाथ जी से आशीर्वाद और माधोराय जी से मिलने के बाद टारना की पहाड़ी पर बने श्यामाकाली के मंदिर में विराजमान होते हैं | ये मंदिर नीचे बाजार से 2 km ऊपर पहाड़ी की चोटी पर है | बड़े देव कमरुनाग यहाँ बैठ कर शिवरात्रि की तमाम गतिविधियों पर नज़र रखते हैं |
एक समय था जब शिवरात्रि का मेला केवल राजपरिवार के सदस्य ही देखते थे | फिर सन 1664 में पहली शिवरात्रि हुई जिसमें आम जनता ने भाग लिया | आज़ादी के बाद भी कुछ बदलाव किये गए | पहले केवल दो जलेब होती थीं (जलेब = देवतों का भक्तों के साथ सामूहिक रूप से चलना ) एक शुरुआत में और एक अंत में | आज़ादी के बाद एक मध्यम जलेब का प्रचलन शुरू किया गया | आज जलेब पड्डल ग्राउंड से राजमहल में बने माधोराय जी के मंदिर तक जाती है और ये क्रम मेले के सात दिनों में तीन बार दोहराया जाता है | हज़ारों की संख्या में भक्त देवतों की पालकियों के पीछे चलते हुए, नाचते झूमते हुए जाते हैं |
दूसरा गीत
(1)
पालकी डोला दी है
पालकी चुला दी है
पालकी सुणा दी है
इक इक दिले दी
पालकी डोल रही है
पालकी झूल रही है
पालकी सुन रही है
एक-एक दिल की
(2)
पालकी ऐ पालकी
पालकी ऐ पालकी
देवते की इक दुए कन्ने
चुकी चुकी मिला दी है
पालकी ये पालकी
पालकी ये पालकी
देवों को आपस में
झुक-झुक मिला रही है
(3)
पालकी ऐ पालकी
बड़ी दुरे आयी है
पड्डल ते जलेब चली
राजमहल आयी है
पालकी ये पालकी
बड़ी दूर से आयी है
पड्डल से जलेब चली
राजमहल तक आयी है
(4)
पालकी ऐ पालकी
पालकी ऐ पालकी
पलकिया आगे अज नगाड़ा जे बजया
रणसीघे बसुदीया दी भी तान लम्मी लाई ऐ
पालकी ये पालकी
पालकी ये पालकी
पालकी के आगे नगाड़े अज बजे हैं
रणसिंघे, विशुधि के सुर लंबे लगे हैं
(5)
पालकी ऐ पालकी
सजी धजी चली ऐ जी
पालकी ऐ पालकी
गज्जी-बज्जी चली ऐ
पालकी ये पालकी
सुन्दर तैयार हो चली है
पालकी ये पालकी
मनभाती हुई चली है
(6)
पालकी ऐ पालकी
रली-मिली चली ऐ
पालकी ऐ पालकी
खेली-खेली चली ऐ
पालकी ये पालकी
इक्कठी हों चली हैं
पालकी ये पालकी
देवते के वश में हों चली हैं
(7)
पालकी ऐ पालकी
देवते दी आयी है
सुख सान सारी जलेबा दी
देवते पता लाई है
पालकी ये पालकी
देवते की आयी है
सबके सुख-दुःख
देवते को बताई है
(8)
देवता ऐ देवता
ऐ हाल सारा जाँणदा
हाल सारा जाँणदा
हर इक दिले की ऐ
खरी खरी पछाँणदा
देवता ये देवता
ये हाल सारा जानते
हर एक बन्दे कि ये
रग-रग जानते
(9)
बन्दया ओ बन्दया
तू छड़ी दे चलाकी हुण
अन्दरे दी सारियाँ
देवता है जाँणदा
भेद सारा जाँणदा
बन्दया ओ बन्दया
तुम छोड़ दो चालाकी अब
अंदर की सारी देवता है जानता
सब कुछ जानता
भेद पूरा जानता
(10)
पालकी ओ पालकी
पालकी ओ पालकी
तू निगाह खरी रख्याँ
राजी बाजी सारयाँ की
सारयाँ जो खुश रख्याँ
सारयाँ जो खुश रख्याँ
पालकी ओ पालकी
पालकी ओ पालकी
तू दया दृष्टि रखना
सबको सुख देना
सबको खुश रखना
सबको खुश रखना
एक बड़ा ही मनोरम दृश्य है देव मिलन का | दोनों देवते आमने सामने आते हैं, दोनों की पालकियाँ एक दूसरे की ओर झुकती हैं जैसे गले मिल रहे हों फिर वापिस सीधी हो दूसरी ओर से देव फिर गले मिलते हैं | इस दौरान बजंतरी पूरे ज़ोरों-शोरों से वाद्य बजाते हैं | पारंपरिक देवधुनों पर झूमते देव और उनके गण बहुत ही उत्साह से शिवतरात्रि उत्सव मानते हैं |
शिवरात्रि मेले की प्रत्येक संध्या पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है | आमतौर पर एक पंजाबी सिंगर को ही इस पावन अवसर पर गाने का मौका दिया जाता है | पहाड़ी कलाकार दूर किसी पहाड़ी पर बैठा डीजे की ऊँची आवाज़ में सुनाई दे रहे पंजाबी गानों को सुनता होगा और सोचता होगा की "बुरा ज़माना आई गया" |
इस लेख में दी गई अधिकतर जानकारी गुरूजी की वेबसाइट से ली गयी है | दोनों गीत मेरी अपनी रिसर्च और अनुभव पर आधारित हैं | आपके बदलाव, सुझाव एवं प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है |
बहुत जानकारीपूर्ण और बढ़िया ....पहाड़ी गानो की बात ही कुछ और है...हिमाचल की याद आ गयी...धन्यवाद!!!
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