Friday 31 March 2017

मण्डी की शिवरात्रि (आलोचनात्मक दृष्टि)

मण्डी की शिवरात्रि, सुनते ही दिलोदिमाग में पालकियों पर झूमते देवताओं की एक छवि सी बन जाती है | पारम्परिक वाद्य यंत्रों के स्वर स्वतः ही दिमाग में गूँजने लगते हैं | इसी सांस्कृतिक देव मिलन को देखने मैं भी चंडीगढ़ से पहुँच गया मण्डी, सीधा गुरूजी के घर में | आज पहला दिन है, नहा-धो के मैंने अपने आप को पवित्र किया, सोच रहा था शायद देवतों के सामने बिना नहाए जाऊँगा तो पाप लगेगा | सुबह हम दोनों पहुँचे पड्डल मैदान में, बसस्टैंड के सामने | यहाँ बड़े-बड़े शेड बनाए गए हैं, जिनमें बहुत सारी दुकाने लगी हैं | सामने ही मंच है, पर देवते ! वो कहीं नज़र नहीं आ रहे | ये मैदान पार किया, पूरे मेले की चकाचौंध देखी | सुई से लेकर गाड़ी सब कुछ बिक रहा है | सामने ही एक और छोटा मैदान है | जैसे-जैसे हम करीब जाते जा रहे हैं, पारम्परिक वाद्य जैसे नगाड़े, पीपनी (शहनाई), बिशुदी, रणसिंघे, चिमटा, थाली आदि की आवाज़ तेज़ होती जा रही है | मैदान में दाखिल हुए तो देखता हूँ, पालकियाँ ही पालकियाँ, देवते ही देवते | बहुत सारे देवते आ चुके हैं, बहुत सारे आ रहे हैं लेकिन ये नज़ारा वैसा नहीं है जैसी छवि मैंने अपने दिमाग में बना रखी थी | अब जब लिखने बैठा हूँ तो सोचता हूँ सबसे पहले कुछ कटु अनुभव ही लिख दिए जाएँ | शायद बाद में जो लिखूँ कम से कम उसमें ये कड़वाहट न आए |

दसणी ऐ गल्ल सच्ची 
राज कोई नी रखणा
सच जे गलाणा लग्गां
ओला कोई नी रखणा
ओ मोयो बजुर्गो 
तुसाँ बड़ी तौली चली गए
मानोनंदा था मेला कियाँ
अज कुनी मिंजो दसणा 
पुलियाँ जवानियाँ की 
रा कुनी दसणा

(आज सच्ची बात बताई जाएगी 
कोई राज नहीं रखा जाएगा 
सच कहने लगा हूँ 
कोई पर्दा नहीं रखा जाएगा 
हे! बड़े-बुजुर्गो
आप बहुत जल्दी चले गए 
शिवरात्रि का मेला होता था कैसे 
अब कौन मुझे बताएगा 
भटकी हुई जवानियों को 
राह कौन दिखायेगा)


सन्तरी भी मंत्रियाँ कन्ने
स्टेजा पर चढाई दित्ते 
जो जहान दे चेले-चाँटे
कुर्सियां पर बठाई दित्ते
देवत्यां दे आसन अज 
पुईयाँ ही लोआई दित्ते
देवते सड़न धूपा
कुन्नी लेणी सुख सान ऐ 
सरकारी पंडाले च लग्गी 
सौ-सौ दूकान ऐ
देवते दा ठकाणा अज
खुल्ला असमान है
मंडी दी शिवरात्रिया च
देवतयाँ दा बुरा हाल है

(संतरियों के साथ मंत्री 
मंच पर चढ़ा दिए गए 
सारे चमचे भी
कुर्सियों पर बैठा दिए गए 
और देवतों के आसन आज 
नीचे ही लगवा दिए गए 
देवते सड़ रहे धूप में
किसको ख्याल है 
सरकारी पंडाल में लगी
सौ-सौ दूकान है
देवते का ठिकाना मगर 
खुला आसमान है 
मंडी की शिवरात्रि में 
देवतों का बुरा हाल है) 


बोतल रे गई ठेके 
नोए गीत लग्गे बजणा 
नशर होए सब  
लोक लग्गे नचणा  
देवते दे राग
अज सारे पुलाई दित्ते
लुधियाने दे लयोंदे कपड़े
देवते की लुआई दित्ते
बोल्दा जे देवता अप्पू
तां हुक्म असली पता लगणा   
गुर जे खोटा होए
तां सच कुन्नी दसणा  

(बोतल रे गई ठेके (बोतल ठेके पर रेह गई, एक गीत के बोल)
नए गीत लगे बजने
नशे में धुत्त सब 
लोग लगे नचने
देवते के राग
आज सभी भूल चले
और लुधियाने के कपड़ों में 
देवते को लपेट चले
देवता जो बोलता खुद
तो असली हुक्म पता चलता 
पुजारी ही अगर झूठा हो 
फिर सच किसे है पता चलता) 


मंडिया दी शिवरात्रि च 
खोदल मची चली ऐ 
सारे फुल चढ़ान जिसकी
ऐ जलेब कुदी चली ऐ
ओहो पाई 
ऐ तां लाल बत्ती चली ऐ 
मंत्रीए पीछे चेल्यां दी 
पीड़ बुरी चली ऐ 

लाल बत्तीए दी राआ च 
देवते जे आयी गए 
धक्के मारी-मारी बने कित्ते
बखिया नसाई ते
माधो राय ने पहले मिल्या मंत्री 
फिरि देवत्यां दी बारी आयी ऐ 
पुलसा जे दबके मारी-मारी 
जलेब बने लायी ऐ      
मजाल ऐ की कोई पुलसाआला 
संतरिये की हाथ लाइ दे 
मंत्री की गलाई के से 
तिद्दी बदली न कराई दे  

(मंडी की शिवरात्रि में 
हल-चल मच गई है
सारे फूल चढ़ाएँ जिसे
ये किसकी पालकी चली है 
अरे ध्यान से तो देखो
ये तो लाल बत्ती चली है
मंत्री के पीछे संतरियों की 
रेल पूरी चली है

अब लाल बत्ती के रास्ते में
देवते जो आ गए
धक्के मार-मार हटाए गए
कोने में पहुँचा गए
माधो राय जी से सबसे पहले मंत्री मिला 
फिर कहीं देवतों का नंबर आया 
पुलिस ने डरा-धमका 
मंत्री का रास्ता बनाया 
और पुलिस की क्या मजाल
जो किसी सन्तरी को हो हड़काया
सन्तरी बोल मंत्री को 
उसे पांगी न पहुँचा दे
एक फोन से उसकी 
बदली न करवा दे)


साबां दे साब न 
बड़े-बड़े साब न
सबते ऊपर तां
मंत्री विराजमान न
काम जे कराणा होए
देवते की कुण पुछदा
चढ़ावा तां असली 
मंत्रीए दे दर चढ़दा
तांहि अज देवते 
मिट्टिया च बठैली दित्ते
मंत्री सणे सन्तरी
स्टेजा पर चढ़ाई दित्ते
शिवरात्र तां बाना बस
पुरे साले दा डंग बणदा  
मेकमा कुण जड़ा
सब्तों बड़ा ककड़ फड़दा

(साहबों के साहब हैं 
बड़े-बड़े साहब हैं 
सबसे ऊपर तो 
मंत्री साहब हैं
काम कोई निकलवाना हो 
तो देवते के पास कोई क्यों जाए 
चढ़ावा वो असली 
मंत्री के दर पे चढ़ाए
तभी देवते धूलि-धूसर 
मंत्री मंच पर विराजमान है
शिवरात्रि तो बस बहाना है 
पैसा पुरे साल का खाना है 
कौनसा महकमा कितना पैसा खाता है 
देखते हैं 
सबसे बड़ी मछली कौन पकड़ पाता है)


2 comments:

  1. रोचक लेखन शैली... बहुत बढ़िया...!!!

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