Tuesday 29 November 2016

गंगा जी की ओर चण्डीगढ़ से हरिद्वार

जो है स्वर्ग में मन्दाकिनी 
भागीरथी भू लोक पर 
जो है ब्रह्मचारिणी 
है माँ मृत्यु लोक पर 
जो है जाह्नवी  
नारी शक्ति स्वरूप पृथ्वी लोक पर 

जो है पाप नाशिनी
मुक्ति दायिनी
तृष्णा ध्वंसकारी 
ज्ञान प्रददाति संस्कारी 
जिसमें डुबकी लगा 
मनुष्य धर्म रंग में रंगे
हर हर गंगे 
हर हर गंगे 
हर हर गंगे 


चल सुन तू भी गंगा जी कि पुकार
जो है ज्ञान का अक्षय धनागार 
जो है आलौकिकता का रूप साकार 
धोकर हमारे पापों का भार
करती मानवता को निर्विकार 
चल-चल अब बाकि सब विचार त्याग 
चल-चल करती गंगा का मधुर राग 
सुन त्रिलोक कि सुरधनी का आलाप   
अब चल छोड़ सब क्रियाकलाप 

सांसारिक आडम्बर छोड़ चलें 
चल अब गंगा जी कि ओर चलें 
चल चलें चंडीगढ़ से हरिद्वार
होके साइकिल पे सवार
लगाएं गंगाजी में डुबकी   
और गंगा तो मैया है हम सबकी 

शागिर्द :

जी चण्डीगढ़ से हरिद्वार 200 km दूर है 
और 200 तो एक तरफ का कुल 400 का टूर है
खैर ये तो सब मीलपत्थरों की माया है 
और हमसफ़र गुरु है तो रहनुमा हमसाया है   
मनुष्य तो वही है जो विपत्तियों से न डरे
जो आँधियों के बीच सीना तान चला चले
चलो आज उसी धर्म की राह चले चलें  
सब काम दरकिनार कर चलें  
चलो गंगा स्नान को चलें 

निकले चण्डीगढ़ से 24 नवम्बर, सुबह 3 बजे


अभी भोर को समय है 
संसार अभी सोया है 
और जो सोया है 
उसने तो खोया है
सामान दोनों का जो एक झोले में डाल दिया गया 
फिर उस झोले को साइकिल के पीछे बांध दिया गया
ब्रह्मवेला में चण्डीगढ़ से प्रस्थान जो किया 
और अँधेरे पथ को टोर्च से प्रकाशवान जो किया
ढ़लती निशा में अभी ठण्डक है थोड़ी  
हरिद्वार की ओर चली गुरु-चेले की है जोड़ी



चण्डीगढ़ से ज़िरकपुर और ज़िरकपुर से पहुंचे अम्बाला 
दो घण्टे के सफ़र ने पूरा शरीर गरमा डाला
साइकिल की सवारी 
अम्बाला से सहारनपुर की ओर हो गई 
और मुल्लाना में भोर हो गई 





एक चाय की दुकान पे हम जो रुके
अभी तलक तो थे हम भी कुछ थके
एक बुजुर्ग ने हमारा पूरा मनोरंजन कर डाला 
अपनी कटु अभिव्यक्ति से 
राजनीती का चीरहरण कर डाला 
73 की उम्र में भी वो चेहरा कैसा खिले 
अब ऐसे लोग विरले ही मिलें
चाय पी और कहा अलविदा 
हम तो अब अपनी राह चले
चण्डीगढ़ से हरिद्वार 
हम गंगा जी कि ओर चले चलें 



खैर बात गंगा जी कि हुई है 
तो थोड़ा विस्तार में बताता हूँ 
स्वर्ग से भू तक कि सुनाता हूँ 
बड़ी अनूठी है मेरे रहनुमा कि यह माया 
जिसने ऐसा खेल रचाया
तपस्वी ब्रह्मचारिणी गंगा जी का 
अहंकार देखो कैसे भगाया 

हिमालय पुत्री उमा का जब शिव से विवाह हुआ  
विदाई के समय तब शिव-गंगा का टकराव हुआ 
शक्तिशाली कौन दोनों में इस बात पे वाद-विवाद हुआ 
ब्रह्मचारिणी रहूंगी जीवन भर 
बैठूंगी तुम्हारे ही मस्तक पर  
गुस्से में आकर तब गंगा ने तब यह प्रण धार लिया 
और समय आने पर अपना वचन निर्वाह किया 

इक्ष्वाकु कुल राजन सगर ने अश्वमेघ यज्ञ प्रदीप्त किया 
अपने साठ हज़ार पुत्रों को घोड़े का दायित्व दिया
फिर देवराज इन्द्र ने सिंहासन भय में छलकपट किया 
घोड़ा माया से मुनि कपिल के आश्रम में बाँध दिया
सगर पुत्रों ने मुनि को खरीखोटी जो सुनाई 
तपस्या भंग हुई मुनि कि 
अब उनकी शामत आयी
मुनिवर हुए क्रोधित जब कभी  
शाप से भस्म कर दिए पुत्र सभी 
जब राजा सगर मुनि से क्षमा मांगने आया 
तब मुनि ने पुत्र मुक्ति के लिए 
गंगाजल का मार्ग सुझाया 
गंगा के स्पर्श से मिलेगा तुम्हारे पुत्रों को मोक्ष 
पर गंगा बसे त्रिलोक में भू पर लाये कौन ?
फिर मुनि ने राजन को कठोर तपस्या का मार्ग दिखलाया 
कहा परिश्रम ही वो मार्ग जो सदा ले स्वर्ग भू पर आया 
राजा सगर पहुँचा हिमालय 
घोर तपस्या को आया 
तप करते-करते प्राण छूट गए 
फिर पौत्र अंशुमान ने तप का बेड़ा उठाया 
अंशुमान पुत्र दिलीप भी इसी मार्ग पर आया 
पर जब सुना भागीरथ ने पिता दिलीप भी तप में गया समाया
विवाह बेदी छोड़ भागीरथ वंश तारने आया 
तप में लीन भागीरथ को गंगा ने जो डराया
कि तू संतानहीन है, यहाँ अपना वंश मिटाने आया 
इधर भागीरथ का तप 
उधर गंगा जी का तप 
तप का तप से टकराव हुआ 
गंगा का अहं विकराल हुआ 
गंगा भू पर लाने आये भागीरथ को
गंगा ने ही शाप दिया

राख कर दे तेरे तपोबल को मेरी समस्त तपसिद्धि
और तू सोचता है तू मुझसे बड़ा है  
गिर जा तू वहां से जहाँ भी तू खड़ा है 
मारी जो गयी थी अहं में बुद्धि 
शाप से दोनों कि ही नष्ट हुई सिद्धि
भागीरथ हंसा और फिर से तप में लग गया 
प्रसन्न हुए भगवान और वर मांगने को कहा 
भागीरथ ने मांगी गंगा और पुत्र प्रदान करने को कहा 
भगवान ने एक शंका जताई 
अगर इस क्रोध से गंगा भू पर आयी 
तो पृथ्वी का नाश पक्का है
भोलेनाथ ही इस समस्या का समाधान सच्चा है 
फिर भगवान ने शिव के जटाजूट की युक्ति सुझाई
भागीरथ फिर लीन हुआ तप में 
उद्यमी एक बार फिर लगा उद्यम में    
स्थान गौकर्ण में एक साल तक एक पैर के एक अँगूठे पर खड़ा रहा 
भोलेनाथ को प्रसन्न करने में लगा रहा 
केवल वायु का सेवन किया 
कठोर तप से भोले को प्रसन्न किया 

आखिर वह शुभ घड़ी आयी 
भागीरथ की तपस्या 
ले गंगा को स्वर्ग से भू पर आयी 
शिव ने फिर गंगा को जटाओं में जकड़ लिया
सारा अहं पानी में बदल दिया 
फिर एक लट अपनी खोल दी 
बिन्दुसर में गंगा छोड़ दी 
छूटते ही गंगा सात धाराओं में बँट गई
तीन गयीं पूर्व तीन पश्चिम 
और सातवीं भागीरथ के पीछे चल पड़ी 
गंगा त्रिपथा और भागीरथी बन गई 

भागीरथ ने फिर गंगा मैया को रास्ता दिखाया 
लेकिन एक आश्रम जो राह में आया 
गंगा के जल ने जब आश्रम में उत्पात मचाया 
ऋषि जहुन को क्रोध आया
और वो गंगा का सारा पानी पी गए 

फिर आग्रह करने पर ऋषि ने गंगा को कानों से निकाला
गंगा अब जाह्नवी बनी
ऋषि जहुन ने है उसे अपनी पुत्री माना
  
गंगा भागीरथ के पीछे-पीछे चलती हुई सागर में मिली 
भागीरथ के पूर्वजों को मुक्ति जो मिली 
मुक्त हुआ वह भी पितृ ऋण से
और इस धरती को माँ स्वरूप गंगा मिली

चलिए यात्रा पे आता हूँ 
यात्रा की सुनाता हूँ 
मुल्लाना से पहुंचे जगाधरी 
धूप भी थी अब कुछ चढ़ी
जगाधरी से चले हम सहारनपुर की ओर
अरे भाईसाहब यह रास्ता है कमरतोड़ 
सड़क तो दो लेन की है
ओर ट्रैफिक है घनघोर



सरसावा से थोड़ा पीछे 
पुल के नीचे 
गंगा की बहन यमुना मिली 
गुमशुदा नकारी सी लगी 
गाड़ी वाले रुकते हैं 
कूड़ा गिरते हैं 
और प्रणाम कर चले जाते हैं 
वाह रे भाई तुम्हारी भक्ति 
यमुना किस्मत पर तरसी 
कूड़ा कर्कट डाल चले
बड़ा करके तुम सम्मान चले 
अब किस मुँह से 
नदियों को माता कह के बुलाते हो
अपने किये पर भी कभी पछताते हो 
कैसी बेशर्मो की है कौम चली 
सब जानते हुए भी मौन चली
कुदरत के नियम 
ये सारे तोड़ चली  
बर्बादी की ओर चली
  
सरसावा से सहारनपुर तक तो और बुरा हाल है 
सड़क बन रही है और चलना दुशवार है 
रास्ता संकरा है 
सड़क किनारे मलवा पड़ा है 
चलें किस ओर 
सामने से बस वाला डिप्पर मारता है
कहता है मैं तो आ रहा हूँ 
तुम नापो अपनी ठौर 



यहाँ ड्राइवर नहीं यमराज गाड़ी चलाते हैं
साइकिल वाले जिनको नज़र ही नहीं आते हैं 
तेज़ हॉर्न बजाता हुआ जब ट्रक सरसराता गुज़रता है
उस समय यम साक्षात् दिखाई पड़ता है


बचते बचाते हम सहारनपुर पहुंचे 
यहाँ भी ट्रैफिक ने भीतर दबोचे
कोई भी कहीं से आ जा सकता है 
ये U.P है दोस्त, यहाँ सबका राज चलता है 
अरे ये टेम्पो वाले भी बड़े हैं निराले 
साथ सटा के चलाएंगे
ब्रेक आपकी लगेगी 
ये तो भईया निकल जावेंगे

खैर निकले सहारनपुर से 
एक ढ़ाबे पे रुके
खाना लगाने को बोला 
और चारपाई पे ढह गए


आधा घण्टा हो गया 
खाना न आया 
पता चला की अभी बनाने वाला नहीं आया 
जब नहीं आया तो हमें बैठा क्यों लिया 
बेकार में हमारा टेम खोटी किया 
फिर बोला की अभी 35 मिनट लगेंगे
यह 35 का कैसा हिसाब हुआ
बेकार में हमारा समय बर्बाद हुआ  

भूखे ही हम आगे बढ़े 
दिखे जो केले तो गगलहेड़ी में रुके 
भर पेट फिर केले जो खाये 
निढ़ाल शरीर में जैसे प्राण लौट आये 
अब तो ऊर्जा की कोई कमी नहीं 
ये केले भी किसी अमृत से कम नहीं



चलते-चलते अब हम भगवानपुर पहुंचे 
यहाँ से हरिद्वार के दो रास्ते होते
सीधा जो जाए रुड़की वाला 
वो रास्ता है लंबा वाला 
बहिने हाथ मुड़ के इक छोटा रस्ता है कटता 
हरिद्वार है जहाँ से पास पड़ता
चले इसी रस्ते पे दोनों हम दीवाने 
अपनी ही मस्ती में हैं चलने वाले 
वो जो सभी को रास्ता दिखता 
भटके हुए को सही राह लाता
बन्दा तो बस उसी का हुक्म बजाता
रहनुमा भी मेरा परीक्षा लेता है 
चलते हुए का होंसला परख़ लेता है 
टायर अगला जो मेरा पंचर हुआ 
कुछ देर बाद मुझे एहसास हुआ 
अभी राह सुनसान थी
सन्नाटा था छाया
मैंने भी फिर मन बनाया 
मिली जो दुकान तो लगवा लूँगा
नहीं तो ऐसे ही हरिद्वार पहुँचा दूँगा 
इसी सोच से मैं गुरूजी के पीछे चलता आया 
खैर रहनुमा जो था मेरा हमसाया
सब कुछ तो है उसी की माया   
रास्ते में गांव इमलीखेड़ा आया 
दुकान मिली तो गुरूजी को बताया  
परीक्षा लेने पंचर था आया  
टायर में हवा अभी भी बाकी है 
साइकिल ये मेरी सुख-दुःख की साथी है 
खैर ढीले इसके कुछ अंजर-पंजर हैं 
अब अगले टायर में कुल 11 पंचर हैं

सही हुई साइकिल तो फिर से चल दिए 
हरिद्वार की ओर जोश नया लिए
जब यात्रा का अंतिम पड़ाव आता है 
नया जोश भर जाता है 
थके हुए अंगों में फिर नयी स्फूर्ती आती है
ये आखिरी मोड़ है कहते-कहते
बची हुई राह भी कट जाती है 

आखिर हम हरिद्वार पहुंचे 
हर हर गंगे 
हर हर गंगे 
के जयकारे गूँजे
उतर गए सीधे घाट पर साइकिल सहित
किया वो कर्म आज जो था पहले से निहित
गंगा को देख कर मैं बस देखता रहा 
भीड़ तो थी बहुत मगर मुझे घाट निर्जन ही लगा 
ये आडम्बरों से घिरे लोग कब आँख खोलेंगे
कब चश्मे पर जमी धूल पोछेंगे 
जब परिश्रम ही नहीं करोगे 
तो पूजा पाठ से क्या होगा
दिल में है चोर 
तो दान से क्या होगा 


गंगा की रीत निभाने आये हैं 
बहुत सारे यहाँ अपने बजुर्गों को घड़े में भर लाये हैं
अस्थियां गंगा में बहती हैं 
लुगाई ख़सम से कहती है 
आज से बाबूजी का कमरा मेरे भाई का होगा
और घर जयदात सब मेरे नाम होगा 
आज से घर परिवार के सब नाते निभाएंगे 
अगली बार मम्मी जी के टाईम ऋषिकेश भी घूमने जायेंगे


अगली सुबह हर की पौड़ी पर गंगा स्नान किया
कुछ चिंतन मनन विचार किया 
शांत हुआ जब मन का भंवर 
फिर गूँजे ये गीत स्वर:  

नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को
सबल-संग्रामी, समग्रोगामी
बनाती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा 
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यूँ ?
(-डॉ भूपेन हज़ारिका)
  

4 comments:

  1. शानदार गीतमय प्रस्तुति

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  2. जी बहुत-बहुत शुक्रिया आपका |

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. वाह जी वाह!!!
    अति उत्तम...!!!

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