ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते
(- निदा फ़ाज़ली )
चूड़धार की सर्द रात है
और तम्बू में दुबका पड़ा हूँ मैं
भेड़ की ऊन के दो कम्बल हैं मेरे पास
उन्हीं में सिमटा पड़ा हूँ मैं
घुटने छाती से लगाए
हाथों से पैरों को सेंकता हूँ मैं
सर-सर करता तम्बू का कपड़ा
सर्द हवा के थपेड़ों से है अकड़ा
माँ की पुरानी चुनरी सर पे लपेटे
पड़ा हुआ हूँ मैं
सोचता हूँ आज मैंने क्या पाया? क्या देखा?
क्या खोया ? क्या सीखा ?
मैंने पाया खुद को खुद के और करीब
देखा तो उसी को हर जगह
जो मैंने खोया तो अपना झूठा ज्ञान
और सीखा की वही है हर वजह की वजह
खैर भली है मेरे रहनुमा की रहनुमाई
दूसरे पहर में मुझे नींद आई
नींद भी है ये कैसा वरदान
वक़्त से इंसान हो जाता है अनजान
टन-टन की आवाज़ जो आई कहीं से
शायद वो घण्टी बंधी जो गधे के गले से
नींद जो मेरी इसने उड़ाई
जो गधे ने तम्बू से अपनी पीठ सर-सराई
तीसरे पहर के मध्य में
तम्बू से फिर जो मैंने सिर निकाला
गधों ने मैदान में डेरा है डाला
अब तो बस यही दुआ करो भाई
कोई गधा तम्बू न उखाड़ दे भाई
गधे जब तम्बू के चक्कर लगाते
घण्टी की टन-टन से जो डराते
अब तो उठ के बैठ गया
अब नींद कहाँ आये
ऊपर से सर्द रात जुल्म ढाए
ना ज़ाने कहाँ से रिस कर सर्द हवा आए
चित्र सुबह लिया गया है |
अब तो बैठ गया हूँ मैं चौंकड़ी मार के
दोनों कम्बल भी ओढ़ लिए हैं लपेटा मार के
आखिरी पहर ये किसी तरह निकल जाए
सर्द रात के बाद जो खिली धूप आए
उसका स्वाद ही निराला होगा
अँधेरे के बाद जब उजाला होगा
मेरे रहनुमा तूने कैसी ये कायनात बनाई
ये सूरज ये चाँद ये दिन ये रात
ये सर्दी ये गर्मी
ये बसंत ये बरसात
क्या रंग-ए-कुदरत में तूने भरे
फिर भी इंसान क्यों तुझसे ना डरे
तेरी ही ताक़त जो सबसे बड़ी है
इंसान की मत तो मरी पड़ी है
काटे हैं जंगल कारखाना लगाया
प्रदूषण ही प्रदूषण है सब जगह फैलाया
कहते हैं फिर की बर्फ़ कम गिरी है
हमारी ही हरकतों के कारण गिरी है
ग्लेशियर ने भी हैं पाओं पीछे खींचे
सूखे हैं झरने अब खेत कहाँ से सींचें
जो कहता है कि वो सबसे बड़ा है
अपनी ही कब्र खोदे खड़ा है
खैर मैं कम्बल लपेटे हुए तम्बू से बहार आया
अंतिम पहर के अँधेरे का साया
रुख़सत हो रहा था
वो दूर कहीं संतरी आसमान अलसाया
अंगड़ाई ले रहा था
वाह ये नज़ारा नशीला
पहले बादल की चादर फिर संतरी फिर नीला
क्षितिज़ की और आँखें लगाए
ऊष्मा के इंतज़ार में
उत्सुकता से भरे हुए नयन अलसाए
करता हूँ भगवान से प्रार्थना
ध्यान क्षितिज़ पे लगाए
सर्द रात में मुझे भेड़ की ऊन का कम्बल बन लपेट लेना
और सुबह मुझे मेरे हिस्से की धूप देना
मेरे रास्ते के पत्थर चाहे बड़े कर देना
पर जब थक जाऊँ तो दिल में जोश जगा देना
और अगर मुनासिब हो तो थोड़ा ज्ञान भी देना
मुझे तुम मेहनत का दान देना
खैर निशा ख़त्म हुई आदित्य उदय हुआ
ठण्डा पड़ा शोणित अब कुछ गर्म हुआ
मानो कोई होली खेल रहा हो
संतरी रंग की पिचकारी सब पर ठेल रहा हो
सब कुछ प्रकाशवान है
पहाड़ पत्थर बादल सब दीप्तमान हैं
शिथिल परिवेश में ऊर्जा का संचार है
हे सूर्यदेव चारों दिशाओं में तेरी जय-जयकार है
चढ़ता हुआ भानु मनोबल चढ़ा देता है
प्राकृति के प्रति सम्मान बढ़ा देता है
अन्धकार मिटा देता है
खैर हमने तम्बू उखाड़ा और सामान समेटा
शिरगुल महाराज के दरबार में हाज़री लगाई
फिर जिस राह आए थे उसी राह कारवां लौटा
फिर पहाड़ी पे चढ़ के भोलेनाथ के किए दर्शन
कैसा मनोरम ये चूड़धार दर्शन
बात है इसकी एक बड़ी ही निराली
यही सबसे ऊँचा पर्वत है
जहाँ तक निगाह डाली
खड़े होके इस पर सुदूर पहाड़ दीखे
कुछ जाने पहचाने
कुछ नए नाम सीखे
चलो भाईयो अब लौट चलें
जिस राह आए थे उसी राह चलें
नीचे जो हम चश्मे तक उतर आए
थे हम सभी भूख के सताए
फिर किन्नौरी ने अपने झोले से पतीला निकाला
मैंने भी कामचलाऊ चूल्हा बना डाला
लकड़ी इकठ्ठी कर फिर आग जलाई
फिर पतीला भर मैग्गी बनाई
जो बचे अंगारे तो उसमें आलू दबा दिए
मैगी खा के शांत हुए
तब तक आलू भुना गए
खैर आलू रख लिए राह के लिए
पानी भर चल दिए हम नौहरा के लिए
पेट जो भरे तो नयी ऊर्जा आई
तीनो हम अब तो दौड़े चले भाई
अब रुकते नहीं हैं बस चलते जाते
थके हुए हैं पर
गीत ख़ुशी के गाते
जंगल के भीतर जब फिर वो घास का मैदान आया
कुछ देर के लिए वहां डेरा जमाया
पानी पिया और आलू भी खाये
फिर से जो सफ़र शुरू किया
सीधा जा के नौहरा में ख़त्म किया
नौहरा से फिर चण्डीगढ़ पहुंचे
यात्रा समाप्त झुई
सब सकुशल लौटे
देखा चूड़धार, सब भोले की माया
रहनुमा वो मेरा, मेरा हमसाया
पर उसी को खोजता था मैं आया
और जो देखा जो अंदर तो उसी को पाया
रहनुमा वो मेरा, मेरा हमसाया
जानकारी
1. अगर तम्बू में रात बिता रहे हों तो अपना सारा सामान समेट कर बैग में भर कर ही सोएं | बिखरा हुआ सामान सुबह तक सीलन से भीग चुका होगा |
2. आपने साथ लेकर गए तमाम प्लास्टिक, मैगी, चिप्स, बीसकिट के खाली पैकेट वापिस ले आएं; यहाँ-वहां गन्दगी न फैलाएं |
इस यात्रा का सबसे सुन्दर चित्र गुरूजी को समर्पित है, जिनके साथ पिछले साल मैं यहाँ आया था और यहीं से मेरी ट्रैकिंग की शुरुआत हुई थी :
बहुत ख़ूबसूरत यात्रा रही!
ReplyDeleteजी हाँ वाकई बहुत ख़ूबसूरत रही
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