Friday 31 March 2017

मण्डी की शिवरात्रि : देवते के वाद्य वादक (बजंतरी)

देवते के वाद्य वादक या बजंतरी, ये कौम उतनी ही पुरानी है जितना पुराना मण्डी की शिवरात्रि का इतिहास है | देवते की धुनों को सहेज के रखना, देवते के आगे वाद्य वजाते हुए चलना ताकि देवते के आगमन की ख़बर सबको पहले ही लग जाए, निःस्वार्थ भाव से देवते की सेवा करना और वो भी बिना किसी तनख्वाह के, ये सारे काम बजंतरियों के लिए निहित हैं | सामाजिक क्रम में बजंतरियों को निम्न जाति का समझा जाता है और एक बात जो मुझे बहुत अख़रती है वो ये कि जिस देवते का बजंतरी सारी उम्र गुणगान गाता है वो उसे छू भी नहीं सकता | बाकी कि सारी अनुभूतियाँ एवं अनुभव निम्नलिखित कविता में पिरो दिए गए हैं :

गान्दा रेआ मैं गुणगान तेरा 
उमरा पर 
फिरदा रेआ तेरे कन्ने 
उमरा पर 
बजाई करी बाजै तेरे 
मिले चार फुल मेकी 
लांदा रेआ तिनां टोपिया उपर
उमरा पर

(गाता आया हूँ मैं गुणगान तुम्हारा 
उम्र भर 
छोड़ा नहीं मैंने साथ तुम्हारा 
उम्र भर 
तुम्हारे वाद्य बजा कर 
मिले चार फूल मुझे 
लगाता रहा हूँ उनको टोपी पर
उम्र भर )


मैं रख्खे दस रपइये तरता पर
चुकी करी गुरें तिज्जो चढाई दित्ते 
ओन्दा जुर्माने दा क्लेश बुरा जे कुन्नी
बजंत्रियें जे तिज्जो हाथ लाई दित्ते
बड़ी होली है नगाड़े दी चोट मेरी
जिस मण्डी जे हिलाई दित्ती
निग्गर चोट बजदी आयी 
जड़ी साकी ज़माने दी
आज फिरि बखिया बठैली
बायी दित्ती

(मैंने दस रुपए धरती पर रखे 
पुजारी ने उठा तुम्हें चढ़ा दिए 
और जुर्माना भरना पड़ जाता अगर 
बजंतरी ने तुम्हें हाथ लगा दिए (बजंतरी = वाद्य बजाने वाला)
मेरे नगाड़े की चोट तो बहुत हल्की है 
जिसने पूरी मण्डी आज हिला दी 
चोट तो ज़माने की हमें जोर से पड़ती आई
आज फिर किनारे बिठा हमें
ज़ोर की लगा दी)



न मैं पुल्या राग तेरा 
न मैं कदी कोई सुर बदले 
बजाईयाँ तेरियाँ धुनाँ
विसबासे दे लमे-लमे साह परी-परी 
फिरि कैनी साड़े दिन बदले

(न मैं भुला हूँ कोई राग तुम्हारा
न मैंने कोई सुर बदले 
बजाई तुम्हारी धुनें 
विश्वास के लंबे श्वास भर के 
फिर क्यों न हमारे दिन बदले )



तू तां मड़ोयाँ सोने चांदिया च
साड़े चार टण्डू भी बांदरां टाई दित्ते
खाइये हुण डीपुए दे चौल बुआली-बुआली
जलेबा ते बाद गुरें जे असां नसाई दित्ते

(तुम सोने-चाँदी से गड़े हो 
हमारी फसल भी बन्दर खा गए 
अब खा रहे है सरकारी चावल
जलेब के बाद पुजारी द्वारा 
हम जो भगा दिए गए )



उठ पलकिया परा
जाग मेरे देवत्या
करी दे अज साब मेरा
गुरें फिरि मिंजो 
कसुन अज बाई दित्ते
की खांदियां रेइयां बस मार 
मेरी पीढ़ियाँ
खरे लेख तू लेखां च
लिखाई दित्ते

(उठो पालकी से 
जागो मेरे देव 
आज करो हिसाब मेरा 
गुर द्वारा आज फिर 
(गुर= देवते का पर्सनल पुजारी )
हम दबा दिए गए 
पीढ़ियों से रहे हम दबते
अच्छे ये भाग तुम्हारे द्वारा 
हमारे भाग्य में लिखा दिए गए)


दिखदा रेआ तेकी
दूर बखिया बेई करी 
आज दिले दी गल 
बी तिज्जो सुनाई दित्ती 
रख्या ना दिले च खोट कदी 
सेवा च टिल ना किती कदी 
तेरी जलेबा च बिशूदी 
मैं अज फिरि लम्मा साह परी 
बजाई दित्ती

(देखता रहा हूँ मैं तुम्हें
दूर बैठा हुआ 
और आज दिल की बात तुम्हें 
दी मैंने सुना 
मैंने तो दिल में न रखा खोट कभी
सेवा में कमी न की कभी
और आज फिर तुम्हारी जलेब में 
मैंने रणसिंघा दिया बजा)


चलिए अब आपको एक फोटो दिखाते हैं | ये फोटो बजंतरियों कि प्रतिस्पर्धा के समय का है | एक बजंतरी टोली ने बजाना शुरू किया ही था कि एक कुत्ता दौड़ के आया और बिलकुल मध्य में आकर लेट गया | शायद ये भी देव ध्वनि में मंत्रमुग्ध हो गया था..................

1 comment:

  1. बहुत ही अच्छा....
    हमेशा की तरह...सीधा पढ़ने वाले के दिल तक....

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