बर्फ़ की जमी हुई तह के पार्श्व में
सुलग रही है आग
स्वाद में रूपायित हो रहा है सौन्दर्य
भूने जा रहे हैं कोमल भुट्टे।
हवा में पसरी है
डीजल और पेट्रोल के धुयें की गंध
लगा हुआ है मीलों लम्बा जाम
आँखें थक गई हैं
ऐसे मौके पर कविता का क्या काम?
किसी के पास अवकाश नहीं
हर कोई आपाधापी में है
बटोरता हुआ
अपने - अपने हिस्से का हिम
अपने - अपने हिस्से का हिमालय.
-सिद्धेश्वर सिंह
मैंने पूछा, "गुरूजी कुछ समय पहले रोहताँग कैसा दिखता था"?
उनका जवाब ऊपर लिखी सिद्धेश्वर जी कि कविता से एकदम मिलता था |
मैं पहली बार रोहताँग पास को पार कर रहा था और गुरूजी पैंतीसवीं बार |
खैर किसी ने सुप्रीम कोर्ट के जज को मन माफिक कीमत पे सामान दिया और जज के विरोध करने पर धमका भी दिया कि हमारा इलाका है, "लेना है तो लो वर्ना हम पीट भी देते हैं" |
सुना है कि 3 दिन बाद रोहताँग से सारे ढाबे दुकाने साफ़ हों गईं और रोहताँग पास पर जाने वाली गाड़ियों कि संख्या को लेकर NGT का आदेश भी आ गया |
चलो जो भी कारण रहा हो रोहताँग का तो भला हो गया, अब न जाम लगता है, न प्लास्टिक कि गंदगी बिछी है; कुछ है तो बस प्राकृति का सान्निध्य |
सुबह सूरज निकल रहा था, करीब 6:30 बजे का समय होगा, रोहताँग पास कि बलखाती हुई सड़क पर HRTC कि बस (8623) में बैठे हम, कैंची मोड़ पे मोड़, चढाई पे हांफती बस कि आवाज़ और प्राकृति के अदभुत सौंदर्य का नज़ारा देखते हुए, बादलों को नीचे छोड़ धीरे धीरे बढे जा रहे थे |
ऊँचे पहाड़, इतने ऊँचे कि बस कि खिड़की में से मुंडी निकाल के भी पुरे नज़र नहीं आये, उन पर बिछी हरी घास कि चादर और उस पर बिखरे हुए गुलाबी, लाल, पीले, नीले और बैंगनी फूल, कई जगहों से बहते हुए झरने, ऐसा सुन्दर और अदभुत नज़ारा मन मोह लेता है |
रहला से मढ़ी और मढ़ी के बाद रानी नाले को पार कर रोहताँग टॉप से होते हुए कोकसर तक रोहताँग पास ज़मीन से उठ कर बादलों से ऊपर जा कर फिर नीचे उतर आता है | रोहताँग टॉप पर 3978 m कि ऊंचाई पे चलती बस और संकरी सड़क से नीचे कि ओर देखने पे तो बस बादल ही दिखाई देते हैं |
रोहताँग पास सर्दियों में 30-40 फुट बर्फ़ के नीचे दबा रहता है | जून से नवम्बर तक खुलने वाला ये रास्ता हिमाचल के कुल्लू जिले को लाहौल-स्पीति जिले से जोड़ता है | रोहतांग पास के दोनों ओर कि संस्कृति, सभ्यता और वनस्पति एक दम भिन्न है |
रोहताँग पास कि उत्पत्ति को लेकर भी दोनों ओर के लोगों कि अपनी अपनी मान्यताएं हैं |
कोकसर पहुँचने पर बस रुकी | यहाँ बहुत सारी दुकानें और ढाबे हैं और एक दुकान पे जा कर हम भी लेमन टी का मज़ा लेने लगे और मैं गुरूजी के अनुभवों में से ज्ञान निचोड़ने लग गया |
भाई , पहाड़ी की सुंदरता के आगे शब्दों का प्रयोग ना भी होता तो भी उत्तम ही रहता , लेकिन आहिर भी बहुत खूबसूरत लगा
ReplyDeleteBhai aapka likhne ka aur Rohtang pas ka varnan krne ka tareeka mujhe vakai me kamal ka likha. vakai me aap bahut achcha likhte ho
ReplyDeleteमुझे आपके यात्रा वर्णन का अंदाज़ बहुत पसंद आया यह यात्रा वर्णन में बिलकुल नया हैं .. शुभकामनाये शौरभ भाई
ReplyDeleteबहुत बढिया....!!!
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