Monday 11 July 2016

चंडीगढ़ से सरस्वती उदगम स्थल,आदि बद्री धाम ,केदारनाथ मंदिर, और फिर वापिस चंडीगढ़ (एक ही दिन में )

हे शारदे मां, हे शारदे मां
अज्ञानता से हमें तार दे मां
तू स्वर की देवी है संगीत तुझसे,
हर शब्द तेरा है हर गीत तुझसे,
हम हैं अकेले, हम हैं अधूरे,
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे मां...........
स्कूल के समय में यह प्रार्थना कई बार अर्धनिद्रा में सुबह की सभा में गाई थी | लेकिन सरस्वती माँ को अर्पित यह प्रार्थना दीवार पे लगी चार हाथों वाली सरस्वती माता की तस्वीर तक ही सीमित थी जो एक हाथ में माला, एक हाथ में वेद पुराण और दो हाथों से वीणा बजाते हुए संसार को ज्ञान बाँट रहीं हैं | खैर यह तो रही बच्चपन की बात, बड़े होते होते तो यही सीखा की अब सरस्वती मैया भी विलुप्त हों गईं हैं और उनके साथ इस देश से ज्ञान भी |
एक दिन गुरूजी की वेबसाइट पे सरस्वती उदगम स्थल के बारे में पढ़ा तो खुद जा कर तथ्य जानने परखने की इच्छा हुई |
चंडीगढ़ के सेक्टर 12 से सरस्वती उदगम स्थल, आदि बद्री गांव पानीवाला, यमुना नगर, हरियाणा लगभग 87 km है | इतनी दूर एक दिन में आना जाना करने के लिए हिम्मत जुटाने में मुझे लगभग 2 घंटे लग गए |
9 जुलाई दिन शनिवार को सुबह 4 बजे ही आँख खुल गई | भगवान की ही मर्जी होगी जो इतनी जल्दी उठ गया | पहले ख्याल आया की आस पास घूम आता हूँ फिर सोचा की अगर घूमना ही है तो आज सरस्वती मैया के पास ही चलते हैं | सुबह लगभग पौने 6 बजे मैं हॉस्टल से निकल गया | मोबाइल में बैटरी 35% थी, इसलिए मैप वगैरा भी चालू नहीं किया | इस यात्रा का प्रोग्राम अचानक जो बना था तो मोबाइल भी चार्ज नहीं कर पाया, शुक्र है कैमरे की बैटरी चार्ज थी |

चंडीगढ़ से पंचकूला पहुंचा | पंचकूला पहुँचने तक सूर्य देव प्रकट हो चुके थे | पंचकूला में घागर नदी पे बने पुल को पार करके NH 7 पे चलने लगा |

सूर्योदय पंचकूला

पंचकूला से रामगढ और रामगढ से रायपुररानी की ओर हो लिया |
रायपुररानी पहुँच के State Highway 1 पकड़ लिया | State Highway 1 पर चलते हुए ठीक 8 बजे नारायणगढ़ पहुँच गया | सुबह के ठंडक भरे मौसम और कम ट्रैफिक के चलते दो घंटे में लगभग 50 km आ गया था |

नारायणगढ़
State Highway 1 पे चलते हुए अब नारायणगढ़ से सढौरा की ओर चल पढ़ा | अब रास्ता खस्ता हाल था | साइकिल सम्भालना मुश्किल हो रहा था और ट्रैफिक भी बढ़ गया था | नारायणगढ़ से बहार निकलने पर रास्ता ठीक हो गया, शायद सड़क बन रही है अभी |


पॉपुलर के पेड़ सढौरा से तेवर सड़क पे |


सढौरा पहुँचने पर पानी पिया और रास्ते के बारे में लोगों से जानकारी हासिल की | सढौरा से तेवर की ओर चल पड़ा | रास्ता अब सुनसान हो गया था | दोनों ओर लगे पॉपुलर के पेड़ रास्ते को ऐसे ढक लेते हैं कि जैसे किसी सुरंग में चल रहे हों | कुछ और दूर जाने पर एक टूटीफूटी दुकान पर नाश्ता करने रुका | बेचारे के पास उबले हुए चने के सिवाए कुछ नहीं था, वो भी शायद रात के ही बचे थे |

 टूटी फूटी दूकान और उबले हुए चनों का नाश्ता |

तेवर पहुँच कर एक शख्स ने मुझे गलत रास्ते पे सीधे सुल्तानपुर कि ओर बढ़ा दिया | हालाँकि तेवर से काठगढ़ होते हुए पानीवाला के लिए सीधा रास्ता भी है |
लगता है भगवान किसी न किसी रूप में आ कर मुझे भटका कर मेरी खूब परीक्षा लेना चाहता है अब चाहे वो मणिमहेश यात्रा में धनछो पे मिले उस दूकानदार के रूप में हो या तेवर में मिले इस शख्स के रूप में | खैर कभी नकारात्मक सोच को अपने ऊपर हावी न होने दिया |
तेवर से सुल्तानपुर और फिर सुल्तानपुर से काठगढ़ त्रिकोण बनाते हुए पहुंचा |
काठगढ़ से पानीवाला और अपनी मंज़िल सरवती उदगम स्थल पहुंचा | गूगल मैप पे जो यात्रा 86 km कि थी मेरे लिए तो वो 101 km कि हो गई थी |


सरस्वती उदगम स्थल |

लगभग 10:30 बजे मैं अपनी खोज स्थल पे पहुँच चुका था |



नासा ने कहा है भाई इसरो ने माना है और हमारी तो मैया हैं | भाई सरस्वती माता वाकई में यहीं से निकलती हैं और आज भी जीवित हैं | जल्दी जा के आचमन कर लो और ज्ञान पा लो | सरस्वती मैया के जल से हाथ मुँह धो के और आचमन करके हमने तो ज्ञान का वरदान मांग लिया | आस पास के परिवेश को गौर से देखने पे किसी बड़ी नदी के बहने के सबूत भी मिल गए |

पत्थर पे बने निशान झूठ नहीं बोलते | गुरूजी ने भी यही निष्कर्ष निकाला है |
खैर सरस्वती मैया से मिलने के बाद, थोड़ा और आगे आदि बद्री धाम भी जा के हाजरी लगा आये और साथ ही में केदारनाथ मंदिर में भी माथा टेक आये |

आदि बद्री धाम

केदारनाथ मंदिर
दोनों मंदिरों के बीच सौम्ब् नदी बहती है | मंदिर के सामने एक दीवार है नदी के काटने से बनी हुई | अगर गुरूजी साथ होते और चंडीगढ़ वापिस जाने का इरादा न होता तो जरूर उस दीवार कि चढाई में हाथ आज़माता | खैर अकेले में ज्यादा खतरा भी मोल नहीं लेना चाहिए |

सौम्ब् नदी और चट्टानी दीवार |
मंदिर से वापिस आते समय भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खोजे गए बौध धर्म के अवशेष देखने अजायबघर गया | ऐसा अजायबघर है यहाँ कि पुरातन अवशेष बाहर खुले में पड़े हैं और अंदर कमरों में बस चित्र लगा रखे हैं | भाई पुरतनविभग वालों अगर ठीक से संजोना नहीं था तो निकाला क्यों ? | लगता है पुरातन विभाग का यह मानना है कि जिन अवशेषों को हजारों हजार साल कुछ नहीं हुआ उनको अब क्या होगा, "रहने दो खुले में" | अजायबघर कि स्थिति देख कर खुदाई स्थल तक जाने कि इच्छा नहीं हुई | वैसे यहाँ तीन खुदाई स्थल हैं जहाँ से यह सारे अवशेष एकत्र किये गए हैं |
खुले में पड़े बोध धर्म के अवशेष |
किसी भी यात्रा का सबसे मुश्किल काम होता है वापिस जाना | दोपहर 2 बजे में सरस्वती माता को प्रणाम कर चंडीगढ़ के लिए निकल पड़ा | सही रास्ता देखा नहीं था तो जहाँ से आया था वहीँ से जाना ठीक समझा |
सबसे पहले तो सुलतानपुर पहुँच कर बनाना शेक के तीन गिलास पिए | भाई सुबह से बस चने खाए थे और भूख तो जोरों कि लगी थी |
सुल्तानपुर से तेवर और तेवर से सढौरा भरी धूप से लड़ते हुए पहुंचा |
आषाढ़ कि धूप और जेठ कि धूप का फर्क पता चल गया | खैर अकेली धूप कम थोड़ी न थी कि सढौरा के पुल के पास टायर पंचर हो गया |
मेरी हीरो हॉक का पंचर टायर |


 मैं भी धूप में पागल ही हो चुका था और अब साइकिल हाथ में लिए चलने लगा | वापिस 2 km जा के पंचर लगवाने से अच्छा है कि आगे ही बढ़ता रहूँ यही सोच के चलता रहा पैदल  |
लगभग 6 km चलने के बाद पंचर कि दूकान मिली और मेरी जान में जान आई | वैसे मैंने तो मन बना लिया था अगर नारायणगढ़ तक चलना पड़े तो मैं चला जाऊंगा |

पंचर लगने वाले फरिशते अपने बच्चे के साथ जो कि बड़े शोंक से काम सीख रहा है |
पंचर मूल्य सिर्फ 10 रुपए |
फिर से साइकिल पे सवार होकर बहुत सुकून मिला |
मकेनिकल इंजीनियर हूँ, पंचर लगाना जनता हूँ, सामान भी है पंचर लगने का, पर साथ कौन लेके जाये, खामखाह इतना बोझ क्यों ढोऊँ | इस यात्रा पे तो मैं कुछ लेके भी नहीं गया था बस मोबाइल, कैमरा, 200 रुपए और 2 लीटर पानी |

नारायणगढ़ पहुँच के फिर रायपुररानी कि ओर हो गया | बीच में एक जगह जूस पीने रुका |
जूस पीने के दौरान का फोटो साइकिल के साथ |
रायपुररानी से पंचकूला और फिर पंचकूला पहुंच के पंचकूला कि सड़कों में खो गया | पूछ पूछ के बड़ी मुश्किल से फिर से सही रास्ते पे आया और इस चक्कर में फिर से 6-7 km फालतू चलना पड़ा |
खैर सुबह 6 बजे कि शुरू हुई 206 km कि यात्रा शाम 6:30 बजे ख़त्म हुई |
वापिस हॉस्टल पहुँच के वॉलीबॉल खेलने लग गया |
इस तरह मेरी यह सरस्वती खोज यात्रा सम्पूर्ण हुई |   

1 comment:

  1. हमेशा की तरह बहुत अलग और अद्भुत अनुभव हुआ भाई ।
    बहुत अच्छा लिखने लगे हो, बस थोड़ी शब्दों की गलती है ।

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