Thursday 4 August 2016

TREKKING Vs CYCLING | पैदल चलना बनाम साइकिल चलना

क्या ट्रैकिंग करना साइकिल चलाने से बेहतर है ?

या

साइकिल चलाना ट्रैकिंग से बेहतर है ?
सवाल तो बहुत सरल है लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से अगर देखा जाए तो दोनों की ही अपनी अपनी खूबियां और खामियां हैं | अब मेरे जैसे के लिए, जिसको दोनों ही पसंद हैं यह सवाल धर्म संकट से कम नहीं है | जैसे किसी ने माँ से पूछ लिया हो  कि उसको अपने दोनों बेटों में से कौन सा अधिक प्रिय है ?
पैदल चलना या अंग्रेजी में बोलें तो ट्रैकिंग, की सबसे अच्छी बात तो यह होती है कि आपके पास समय बहुत होता है, आसपास के नज़ारों को देखने का, फूल पौधों को बारीकी से निहारने का, मानो आपकी सारी इन्द्रियां आपको आपके वातावरण का सम्पूर्ण स्वाद मुहैया करवाने में लगीं हों और आप सकून से सब जज़्ब किये जा रहे हों | साइकिल चलाने कि बात करें तो सबसे अच्छी बात मुझे तो यह लगती है कि आप केवल अपने शारीरिक बल पर, बहुत कम समय में बहुत ज़्यदा फासला तय कर सकते हो | समय का यही आभाव आपका ध्यान केंद्रित रखता है | आपको अपना ध्यान रास्ते पे ही रखना होता है, इधर उधर के नज़ारों कि बस झलक भर ही देख सकते हैं |
ट्रेकिंग करते समय आप कहीं पे भी रुक कर कैमरा निकाल कर फोटो ले सकतें हैं लेकिन साइकिल चलाते हुए आप तभी रुकेंगे जब कुछ ख़ास आपको आकर्षित करेगा |
साइकिल चलाते हुए आप बहुत जल्दी हालात के आदि हो जाते हो | इसका भावार्थ यह है कि शुरू के कुछ किलोमीटर ही आपको आगे के यात्रापथ का अंदाज़ा दे देंगे और आप स्वतः ही अपने आपको पथ के हिसाब से व्यवस्थित कर लोगे | खैर अगर यह बात समझ न आये तो चिंता कि बात नहीं है यह सारा प्रोसेस ऑटोमैटिक है | ट्रेकिंग में ऐसा नहीं होता, पगडण्डी किस मोड़ पे चट्टान के ऊपर से चली जाए या सीधे खड़ी चढाई में परिवर्तित हो जाए; कुछ कहा नहीं जा सकता | इसलिए ट्रेकिंग कि शुरुआत करना और साइक्लिगं शुरू करने में ट्रेकिंग का "श्री गणेश" करना ज़्यदा मुश्किल है |
अगर आप साइकिल सिर्फ ट्रेकिंग कि ट्रेनिंग के लिए चला रहे हैं तो स्टैमिना बनाने के लिए तो साइक्लिगं सही है लेकिन जिन मांसपेशियों कि जरुरत आपको पहाड़ पर चलने के लिए होगी वो अविकसित ही रह जाएँगी; ख़ास कर पहाड़ से नीचे उतरते समय जब आपको अपने आपको नीचे जाने से रोकने के लिए बल लगाना होता है | साइक्लिगं आपकी जांघों को अधिक सुद्रिड करती है और ट्रैकिंग आपकी जांघों के साथ साथ घुटने के नीचे कि पिण्डली को भी |
गाड़ी से तीन गुना धीमी साइकिल और साइक्लिगं से तीन गुना धीमी ट्रैकिंग मेरा तो यही सूत्र है जिसको ध्यान में रख कर में अपनी यात्रा प्लान करता हूँ |


ट्रेकिंग करते समय आपका सामान आपकी पीठ पे लदा रहता है और आपको अपने को उठा कर चलना होता है | यहाँ शरीर के ऊपरी और निचले हिस्से, दोनों का ही ज़ोर लगता है | साइकिल चलाते समय सामान तो पीछे कैरियर पे बँधा रहता है और ज़ोर तो सिर्फ टाँगों का ही लगता है |


खैर अब तो यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आपको, पीठ पे "WILDKRAFT" का RUKSAK उठाए हाथ में "CARLSBERG" कि बोतल और आँखों पे "RAY-BAN" का चश्मा लगाने वाला ट्रेकर; या कि 1.5 लाख की "TREK DOMANE" साइकिल लिए, रसद पानी कि गाड़ी के आगे चलने वाला साइक्लिस्ट; 

दोनों में से "कौन पसंद" है |

"मेरे लिए तो पैदल 5-10 किलोमीटर चलने वाला पहाड़ का बच्चा ट्रेकर है और हर कबाड़ी और कुल्फी बेचने वाला साइक्लिस्ट"|

नोट : तमाम जानकारी व्यक्तिगत अनुभव पे आधारित है और इसका कोई वैज्ञानिक विश्लेषण अभी तक नहीं किया गया है | अपनी समझ से जज़्ब करें | 

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